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________________ तीर्थकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा : तुलनात्मक अध्ययन : २७१ ३. अवतारवाद बनाम उत्तारवाद यद्यपि दोनों ही धर्मों में अवतार एवं तीर्थङ्कर के समय-समय पर जन्म ग्रहण करने की बात कही गई है और प्रथमतः इस आधार पर उनमें एक समानता मानी जा सकती है किन्तु अवतार के पुनः पुनः जन्म ग्रहण या पुनः पुनः शरीर धारण करने की अवधारणा और तीर्थङ्करों के काल क्रम में पुनः उत्पन्न होने की अवधारणाएं मूलतः भिन्न नहीं हैं । अवतारवाद की अवधारणा में ईश्वर लोकमंगल के लिए पुनः पुनः शरीर धारण करता है, जबकि तीर्थङ्कर की अवधारणा में वही आत्मा पुनः जन्म धारण नहीं करती । तोर्थङ्कर की अवधारणा में समय-समय पर एक भिन्न आत्मा परमात्मा शक्ति से युक्त हो लोकमंगल हेतु मार्ग निर्देशन करती है। अवतारवाद एक ही सत्ता के अवतरण का सिद्धान्त है जबकि तीर्थङ्कर की अवधारणा किसी आत्मा के परमात्म तत्व के रूप में विकसित होने का सिद्धान्त है । जैनधर्म को मान्यता यह है कि सामान्य आत्माओं में से ही कोई एक अपने आध्यात्मिक विकास को क्रमिक यात्रा को करते हुए, तीर्थङ्कर के गरिमामय पद को प्राप्त कर लोकमंगल हेतु अपने जीवन को समर्पित करता हुआ निर्वाण प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार तीर्थङ्कर की अवधारणा में प्रत्येक तीर्थङ्कर की आत्मा भिन्न-भिन्न है। सिद्धावस्था में भी प्रत्येक तीर्थङ्कर अपना भिन्न अस्तित्व रखता है। उसका अपने पूर्वगामी या पश्चगामी तीर्थंकर से कोई सम्बन्ध नहीं होता है। उनसे मात्र समरूपता है वे समान उच्च गुणों के साधक हैं। योग्यता को दृष्टि से समान होते हुए भी वे भिन्न व्यक्ति हैं। अवतारवाद में आत्मा या परमात्मा ऊपर से नीचे जाता है जबकि तीर्थंकर की अवधारणा में कोई परमात्मतत्व की ऊँचाइयों को प्राप्त कर लेता है । एक में अवतरण है तो दूसरे में उन्नयन है अतः दोनों अवधारणाएं बाह्यतः समान होने पर भी मूलतः भिन्नभिन्न हैं। ४. "अयं आत्मा ब्रह्म" अथवा "अहं ब्रह्मास्मि" ____ कहकर हिन्दू धर्म में जीवात्मा और परमात्मा के मध्य ऐक्य स्वीकार किया गया है। उसी प्रकार जैनधर्म में 'अप्पा सो परमप्पा" कहकर आत्मा और परमात्मा के बीच एकत्व स्थापित किया गया है। यहाँ भी शाब्दिक बाह्य समानता के आधार पर इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि दोनों का दृष्टिकोण एक है क्योंकि हिन्दू धर्म में "अयं आत्मा ब्रह्म" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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