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२६६ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
७. अवतारों, तीर्थंकरों और बुद्धों की संख्या सम्बन्धी अवधारणा का क्रमिक विकास
अवतारों, तीर्थङ्करों और बुद्धों की संख्या के प्रश्न के सन्दर्भ में हमें हिन्दू, जैन और बौद्ध परम्परा के ग्रन्थों के अध्ययन से तथा उनके ऐतिहासिक क्रम के अध्ययन से सुस्पष्ट हो जाता है कि इनकी संख्या में क्रमशः वृद्धि होती रही है । हिन्दू परम्परा में वेदों में वराह, अश्विनो कुमार और विष्णु के उल्लेख प्राप्त होते हैं, तैत्तिरीयसंहिता में इनके साथ ही साथ मत्स्य, कूर्म, नरसिंह और वामन का उल्लेख भी प्राप्त हो जाता है । उपनिषद् युग में उनमें कपिल का नाम जुड़ गया और महाकाव्य में राम और कृष्ण के नाम भी जुड़ जाते हैं । प्रारम्भ में इनकी संख्या १०, . फिर २२,२४,३९ और आगे चलकर अनेकानेक अवतारों की कल्पना है ।
इसी प्रकार हम देखते हैं कि जैन परम्परा के प्राचीनतम ग्रन्थ आचारांग (ई०पू० ४ शती) में केवल महावीर का उल्लेख हमें मिलता है दूसरे प्राचीन ग्रन्थ ऋषिभाषित ( ई० पू० २ शती) में तथा उत्तराध्ययन ( ई०पू० प्रथम शताब्दी) में महावीर और पार्श्व के उल्लेख हैं । फिर कल्पसूत्र में २४ तीर्थङ्करों के नामोल्लेख के साथ ही साथ ऋषभ अरिष्टनेमि, पार्श्व एवं महावीर के कथानक उपलब्ध होते हैं । इसमें भी मात्र महावीर का जीवनवृत्त ही विस्तार के साथ उपलब्ध है । परवर्ती साहित्य में सभी तीर्थङ्करों के जीवनवृत्त भो उल्लिखित हैं । समवायांग के परवर्ती अंश में भूत और भावो तीर्थङ्करों के भी उल्लेख मिलते हैं। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में एक साथ अधिक से अधिक १७० कम से कम बीस तीर्थङ्करों के होने का उल्लेख उपलब्ध है । आगे चलकर मनुष्य लोक के विभिन्न क्षेत्रों के भूत, वर्तमान और भविष्य काल के असंख्य तीर्थंकरों की अवधारणा हमारे सामने आती है ।
बौद्ध परम्परा में भी प्रथम शाक्य मुनि बुद्ध का उल्लेख उसके बाद पिटक साहित्य के महत्वपूर्ण ग्रन्थ दीघनिकाय और संयुत्तनिकाय में ७ पूर्ववर्ती बुद्धों का उल्लेख उपलब्ध होता है । लंकावतारसूत्र में २४ बुद्धों की अवधारणा मिलती है, किन्तु उसमें आगे चलकर यह मान लिया गया कि जिस प्रकार गंगा के बालू कणों की गणना असम्भव है उसी प्रकार बुद्धों की संख्या की गणना करना असम्भव है । अन्त में यह मान लिया गया है कि बुद्ध भी अनन्त हैं ।
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