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तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार को अवधारणा : तुलनात्मक अध्ययन : २६३ के लिए तथा उनकी प्रवचन सभा को रचना करने के लिए देव स्वर्ग से भतल पर आते हैं। बौद्धों की यह मान्यता है कि बुद्ध ने जव श्रावस्ती में प्रातिहार्य दिखाये तो उनका एक प्रातिहार्य ऐसा भी था जिसमें देवगग उनकी सभा में उपस्थित होते हैं ।
६. जहाँ बौद्ध परम्परा में पूरण काश्यप आदि तीथिकों के आग्रह पर बुद्ध द्वारा स्वयं प्रातिहार्य दिखाने की बात कही गई, वहाँ जैन परम्परा में स्वयं तीर्थङ्कर द्वारा किसी प्रातिहार्य का दिखाने की कोई चर्चा नहीं . है। स्मरणीय है कि वैसे बौद्ध परम्परा में भी भिक्षु के लिए चमत्कार दिखाना निषिद्ध है। यद्यपि जैन परम्परा यह मानती है-तीर्थङ्कर की . महत्ता को स्थापित करने के लिए देवगण प्रातिहार्य दिखाते हैं।
३. बुद्ध और तीर्थंकर को अवधारणा में अलौकिकता का
समान विकास
पालि-त्रिपिटक की अपेक्षा भी परवर्ती महायान साहित्य में बुद्ध के सम्बन्ध में अनेक अलौकिकताओं का प्रवेश हो गया है। बुद्ध और तीर्थकर की अलौकिकता की चर्चा के प्रसंग में हम देखते हैं कि दोनों परम्पराओं में इनका क्रमिक विकास हुआ है । पालि-त्रिपिटक के प्राचीनतम अंश सुत्तनिपात आदि में बुद्ध के जीवन की चर्चा का कुछ उल्लेख होते हुए वहाँ उनके सम्बन्ध में किन्हीं अलौकिकताओं को कोई विशेष चर्चा नहीं है। पालि-त्रिपिटक के प्राचीनतम अश बुद्ध को एक तपस्वी साधक के रूप में ही प्रस्तुत करते हैं, जो अपनो साधना के द्वारा अन्त में ज्ञान को प्राप्त करता है । जैन आगम साहित्य के प्राचोनतम अंश आचारांग में हम यही बात देखते हैं कि उसके प्रथम श्रुतस्कन्ध में महावीर के जीवनवृत्त के कुछ अंशों का उल्लेख है परन्तु वहाँ उनकी अलौकिकता की कोई चर्चा नहीं है, उसमें वे कठोर साधक या महान् तपस्वी के रूप में ही प्रस्तुत हैं किन्तु इसी में जोड़ा गया परवर्ती अंश जो आचारचूला के नाम से जाना जाता है, में महावीर के जीवन चरित्र में अनेक अलौकिकताएँ आ गईं। उसी प्रकार कल्पसूत्र में भी उनके जीवन के सम्बन्ध में कुछ अलौकिकताओं का उल्लेख है । क्रमशः जैन एवं बौद्ध दोनों के परवर्ती साहित्यिक ग्रन्थों, दोनों में बुद्ध और तीर्थङ्कर को पूरे तौर से अलौकिक बना दिया गया।
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