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________________ २६२ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन १२. बुद्ध के सम्बन्ध में यह माना जाता है कि जब वे माता की कुक्षि से बाहर निकलते हैं तो उन्हें पृथ्वी पर आने से पूर्व ही देव पुत्र ले लेते हैं और देवलोक से दो उदक धारायें उनका और उनकी माता का अभिषेक करती हैं । जैन परम्परा में यद्यपि यह बात कुछ प्रकारान्तर से स्वीकार की गई है । जैन परम्परा के अनुसार तीर्थंकर का जन्म होने पर इन्द्र एवं देवगण उन्हें मेरु पर्वत पर ले जाकर उनका अभिषेक करते हैं । (ब) तीर्थंकर एवं बुद्ध का अन्तर अन्य समानताओं के बावजूद भी दोनों परम्पराओं में कुछ महत्वपूर्ण अन्तर भी दिखाई देते हैं, जिन बातों को लेकर जैन और बौद्ध परम्पराओं में अन्तर है, वे निम्न हैं १. जहाँ बौद्ध परम्परा यह मानती है कि बोधिसत्व की माता बोधिसत्व को जन्म देकर सातवें दिन स्वर्गवासी हो जाती है, जैन परम्परा को यह स्वीकार नहीं । २. बौद्ध परम्परा में यह उल्लिखित है कि बोधिसत्व की माता खड़ेखड़े प्रसव करती है, वहाँ जैन परम्परा में ऐसे किसी नियम का उल्लेख नहीं है । ३. जहाँ बौद्ध परम्परा के अनुसार बोधिसत्व अपने जन्म के साथ ही सात कदम उत्तर दिशा की ओर चलता है और लोक में अपने श्रेष्ठता का उद्घोष करता है, ऐसा उल्लेख जैन परम्परा में हमें कहीं देखने को नहीं मिलता है । ४. जन्म के अतिरिक्त अन्य कुछ प्रसंग भी ऐसे हैं जिनमें दोनों परम्पराओं में कुछ समानता और कुछ भेद हैं । जैन मान्यता के अनुसार तीर्थङ्कर के अभिनिष्क्रमण के पूर्वं देवता आकर उनसे लोक कल्याण के लिए प्रव्रजित होने की प्रार्थना करते हैं जबकि बौद्ध मान्यता में बुद्ध की प्रव्रज्या के समय नहीं अपितु उनके अर्हत् बनने के बाद महाब्रह्मा लोकमंगल के लिए उनसे धर्मचक्र प्रवर्तन के हेतु प्रार्थना करते हैं । ५. बौद्ध परम्परा में जहाँ बुद्ध के सशरीर तुषित देवलोक और शुद्धावास देवलोक में जाने का उल्लेख है, वहाँ जैन परम्परा में ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है कि तीर्थङ्कर सशरीर देवलोक को जाता है। इसके विपरीत जैन परम्परा में यह माना जाता है कि तीर्थङ्कर के प्रवचन को सुनने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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