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________________ २६० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन होता है। जैनों की भी यह कल्पना है कि जिस आत्मा ने तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध किया होता है वह देवलोक से चलकर मनुष्य लोक में जन्म ग्रहण करती है, यद्यपि जैन परम्परा में यह आवश्यक नहीं माना गया कि तीर्थंकर की आत्मा देवलोक से ही अवतीर्ण होती है वह नरकलोक से भी मनुष्यलोक में तीर्थंकर के रूप में अवतोणं हो सकती है। ___पांचवीं-छठी शताब्दी में कुछ बौद्धों ने यह कल्पना भी को, कोई आदिबुद्ध ( आदिकल्पिक बुद्ध ) होता है, जिनसे अन्य बुद्धों का प्रादुर्भाव हो सकता है। यद्यपि इस विचार धारा को तैर्थिक अर्थात Heretic विचार कहा गया, किन्तु ऐसा लगता है कि यह धारणा मुख्यतया अवतारवाद की धारणा के निकट है और शायद अवतार की धारणा के अनुसार हो यह आदि बुद्ध का विचार बौद्ध धर्म में आया हो । ४. बौद्ध धर्म में यह अवधारणा है कि भावी बुद्ध पूर्वबुद्ध के सम्मुख यह प्रणिधान करता है कि "मैं बुद्ध होऊँगा" और फिर अन्य जन्मों में दस पारमिताओं की साधना करता हुआ अन्त में बद्ध रूप में जन्म लेता है। जैन परम्परा में थोड़ी भिन्नता के साथ इस बात को स्वीकार किया गया। उसमें यह माना गया है कि भविष्य में तीर्थंकर होने वाली आत्मा प्रथम किसो तीर्थकर अथवा प्रबुद्ध आचार्य आदि से प्रतिबोधित हो समत्व को प्राप्त करती है और उसके बाद अनेक जन्मों में तीर्थंकर नामकर्म के उपार्जन के १६ अथवा २० बातों की साधना करते हुए अन्त में तीर्थंकर नाम गोत्र कर्म का उपार्जन करता है और उसके बाद तीसरे जन्म में तीर्थंकर के रूप में जन्म लेता है । ५. बुद्ध और तीर्थंकर में सामान्य मानवों की अपेक्षा कुछ विशिष्ट लक्षणों की कल्पना की गई है। दीघनिकाय में ही यह कल्पना कर ली गई है कि बोधिसत्व जब तूषित देवलोक से च्युत हो माता के गर्भ में आते हैं तो एक विशिष्ट प्रकार का प्रकाश समस्त लोक को अभिभूत कर देता है। मनुष्य और अमनुष्य उस समय हिंसा का भाव नहीं रखते हैं। यही बात जैनधर्म में तीर्थंकर को लेकर कही गई है, वहीं यह बताया गया है कि जब तीर्थंकर का जन्म होता है तब समस्त विश्व प्रकाश से अभिभूत हो जाता है, यहाँ तक कि नरक क्षेत्र में जहाँ गहन अन्धकार है वहाँ भी एक क्षण के लिए प्रकाश उद्भाषित हो जाता है तथा सभी प्राणी वैरभावको छोड़ देते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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