SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचम अध्याय तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा : तुलनात्मक अध्ययन १. अवतार, तीर्थंकर और बुद्ध की अवधारणाओं का तुलनात्मक विवेचन भारतीय साहित्य का प्राचीनतम भाग वेद है । । । है कि वेदों का काल लगभग १००० ई० पू० तक है युग है । वेदों में यद्यपि हमें विष्णु का नाम मिलता है इन्द्र, प्रजापति आदि के समान एक देवता मात्र हैं मनुष्य जाति की रक्षा और कल्याण के लिये विभिन्न देवताओं की उपासना की जाती थी । आगे चलकर अनेक देवताओं में एक देव प्रमुख ना और वही परवर्ती युग में आकर अवतारवाद का आधार बना । प्रारम्भ में इन्द्र और प्रजापति को महत्त्व मिला, किन्तु आगे चलकर विष्णु प्रधान देव बन गये और विभिन्न अवतारी रूपों का सम्बन्ध उनसे जोड़ा गया । विष्णु के जिन विभिन्न अवतारों की चर्चा हमें उपलब्ध होती है, उनमें वराह अवतार और उनके पृथ्वी के उद्धार सम्बन्धी कथानक का सन्दर्भ हमें अथर्ववेद में मिलता है । मत्स्य, कूर्म और वामन के आख्यान तैत्तिरीय संहिता और ब्राह्मणों में भी मिलते हैं, यद्यपि इनमें मत्स्य, कूर्म और वामन का सम्बन्ध विष्णु की अपेक्षा प्रजापति से जोड़ा गया है । ऋग्वेद और बृहदारण्यक उपनिषद् में इन्द्र के द्वारा माया रूप ग्रहण करने की चर्चा भी हुई है । सम्भवतः इसी आधार पर आगे चलकर अवतारों की कल्पना विकसित हुई होगी । औपनिषदिक साहित्य में यद्यपि स्पष्टरूप से हमें अवतारवाद की अवधारणा प्राप्त नहीं होती, किन्तु केनोपनिषद् में ब्रह्म के यक्ष रूप में प्रकट होने का हमें उल्लेख मिलता है । वस्तुतः अवतारवाद की अवधारणा का विकास भागवत धर्म के साथ ही हुआ, चाहे उसके बीज वैदिक और औपनिषदिक साहित्य में यत्र-तत्र बिखरे हुए रहे हों । ऐतिहासिक दृष्टि से अवतारवाद की अवधारणा का विकास ई० पू० दूसरी शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी के बीच ही हुआ है । यही काल जैनों में तीर्थंकरों की अवधारणा के विकास का और बौद्धों में बुद्ध और बोधिसत्व को अवधारणा के विकास का है । वे सभी साहित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only यह सुनिश्चित सत्य यह बहुदेववाद का किन्तु वैदिक विष्णु वैदिक काल में भी www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy