________________
अवतार की अवधारणा : २३९
१०. इस सृष्टि में देवता, पितर, असुर, गन्धर्व, अप्सरा, यक्ष, राक्षस,
सिद्ध, चारण, विद्याधर, भूत-प्रेत, पिशाच, किन्नर (हयमुख), किम्पुरुष (तुच्छ मानव) आदि से मानी गई है।
उपरोक्त सृष्टि क्रम से एक बात तो स्पष्ट नजर आती है कि इस सृष्टि क्रम से युग क्रम का बोध स्पष्ट नहीं होता, किन्तु वनस्पतियों एवं पशओं के अनन्तर अश्व-मुख “किन्नर" तथा विकृत मानव “किम्पुरुष" हमें क्रमशः एन्थोप्वायड और ह्यमनोआयड युग का भान कराते हैं। इनसे आदिम के विकास क्रम को जान सकते हैं। पशुओं की अपेक्षा मनुष्यों में शब्दों एवं भाषाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता है। इससे सृष्टि विकास का कोई क्रम स्पष्ट नहीं प्रतीत होता, किन्तु पौराणिक अवतार, सृष्टि प्रक्रिया और विकास के युग क्रम का द्योतन करते हैं ।
विदुषी एनी बेसेंट ने अपनी अवतार नामक पुस्तक में अवतारों का निम्न क्रम में युग विभाजन किया है
१. मत्स्ययुग (Silurian Age) २. कूर्मयुग (Amphibian Age) ३. वराहयुग (Mammalian Age) ४. नृसिंह युग (Lemurian Age)
इसी प्रकार उन्होंने वामन आदि मानव अवतारों को विभिन्न विकास युगों के परिचायक रूपों में सिद्ध करने का प्रयत्न किया है।
प्रसिद्ध जीवशास्त्री श्रीमानी ने अपनी पुस्तक Introduction to Zoology में प्रचलित प्रत्येक अवतार को अपने युग विशेष का द्योतक कहा है।' इनके मतानुसार कूर्म सरीसृप (Reptile-रेंगने वाले) युग, वामन-Pigmy anthropoids परशराम-Primitive man or hunter राम-धनुषधारी या Marked man etc. तथा कृष्ण और बुद्ध परिष्कृत मानव के सूचक हैं। मानवशास्त्री श्री सत्यव्रत ने अपनी पुस्तक "मानवशास्त्र" में भी अवतारवादी क्रम प्रस्तुत किया है। इनके मतानुसार प्रथम जलजीव मत्स्य, जल-थल में रहने वाला जीव कूर्म, जलप्रिय पशुवराह, पश-मानव मिश्रित रूप-नृसिंह, वौना मानवरूप-वामन, पूर्ण मानव प्रत्यय राम और कृष्ण बताये गये हैं। इस प्रकार उपयुक्त विभाजनों में अवतारवादी विकास क्रम दर्शाया गया है। 1. Introduction to Zoology, p. 709. २. मानवशास्त्र, पृ० ४८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org