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________________ २३८ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन सूक्ष्म शरीर सहित जल में निमग्न थे। ऐसे समय में काल शक्ति ने विष्णु को प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप अण्डरूप हिरण्यमय विराट-पुरुष का आविर्भाव हुआ और वह विराट पुरुष अनन्त वर्षों तक सम्पूर्ण जीवों को साथ लेकर रहा । ___ इस प्रकार हम विष्णु को विभुत्व का तो हिरण्यगर्भ को अणुत्व का द्योतक कह सकते हैं। हिरण्यगर्भ में अणुत्व के द्योतक के रूप में एककोशीय (Nicellar) प्राणो से अनन्तकोशीय प्राणी के रूप में विकसित होने की सम्भावनायें लक्षित हैं। भागवत में क्रमशः मुख, नाक, आँख, कान, त्वचा एवं रोम रूप तनु कोष द्वारा हिरण्यमय पुरुष के शारीरिक विकास क्रम को बताया गया है, जिसमें क्रमशः लिंग, वीर्य, गुदा, हाथ, चरण आदि भो उत्पन्न हुये, तथा बुद्धि, अहंकार द्वारा उसके मानसिक विकास को परिलक्षित किया गया है । महाभारत की तरह भागवत में भी सृष्टि के विकास क्रम को निम्न रूपों में बाँटा जा सकता है १. महत् ) ३. भूत यह आध्यात्मिक सृष्टि के तत्व हैं ।" ४. इन्द्रियाँ ५. सात्विक अहंकार (मन) ६. अविद्या, तम, मोह, आदि से जीवों के मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। ७. वृक्षों एवं लताओं से वानस्पतिक विकास परिलक्षित होता है । ८. पशु-पक्षियों के विकास को जैविक सृष्टि कह सकते हैं । ९. मनुष्यों १. भागवत ३/९/१० २. वही, ३/६/८ ३. वही ३/६/६ ४. वही ३/६/१८-२१ ५. वही, ३/१०/१४-१६ ६. वही, ३/१०/१७ ७. वही, ३/१०/२१८-२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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