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________________ अवतार को अवधारणा : २३७ होता है किन्तु पौराणिक रूढ़ियों और धारणाओं के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के लिये दोनों का तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है। अवतारवादी धारणाओं के प्रसंग में आने वाले कतिपय घटनात्मक कार्य व्यापार जैसे, बन्दरों द्वारा निर्मित पत्थरों का पुल, जंगल में निवास की परम्परा, वस्त्रों के रूप में वृक्षों की छाल एवं मृगछाला, वराह द्वारा दांत का प्रयोग, नसिंह द्वारा नख का प्रयोग, वामन के हाथ में डंडा, परशुराम द्वारा परशु ( फरसा ) का उपयोग, राम द्वारा धनुषबाण धारण आदि उपकरण मानवशास्त्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर संकेत करते हैं। मानवशास्त्र की तरह अवतारवाद की धारणा में भी विकास प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं और इससे मानव सभ्यता के विकास क्रम का पता चलता है। मानवशास्त्र एवं अवतारवाद में अन्तर केवल इतना है कि आज मानवशास्त्र के उपकरण भूभौतिक, पदार्थगत तथा जोवों से सम्बद्ध हैं; जबकि अवतार में अपने युग की विशेषताओं से युक्त प्रतिनिधिक उपादान हैं। १६. पौराणिक सृष्टि और अवतार पुराणों में जो सृष्टि का क्रम पाया जाता है उसमें तत्वज्ञान मनोविज्ञान और जीवविज्ञान सभी का समन्वित रूप है। पौराणिक सुष्टिक्रम की चर्चा में, महाभारत में भौतिक, वानस्पतिक, जैविक, मानसिक और आध्यात्मिक सृष्टियों के उद्धरण मिलते हैं। भौतिक सृष्टि का विकास कश्यप एवं अदिति से सोम ( चन्द्र ), अनिल, अनल, प्रत्यूष, प्रभास से माना गया है ।' वानस्पतिक सृष्टिक्रम में बरगद, पीपल आदि वृक्षों को रखते हैं। महाभारत में जैविक सष्टि के प्रतीक पूलह से शरभ, सिंह, किम्पुरुष, व्याघ्र. रीछ, ईहामृग आदि पाये जाते हैं। मानसिक सृष्टि के प्रतीक रूप में कीर्ति, मेधा, श्रद्धा, लज्जा, मति, शान्त, शम, काम और हर्ष-तत्व महाभारत में उपलब्ध हैं । अन्त में हम विष्णु से हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति को आध्यात्मिक सष्टि का विकास कह सकते हैं। श्रीमद्भागवत में भी सष्टि के विकासक्रम को उपरोक्त सभी विशेषतायें पाई जातो हैं । भागवत में कहा गया है कि सृष्टि के पूर्व समस्त भूमण्डल जल में व्याप्त था। मात्र विष्णु ही सभी प्राणियों के १. महाभारत १/६६/१७-१८ २. वहो, १/६६/८ __३. वही, १/६६/१५; १/६६/२३; १/६६/३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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