SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन तथा अतृप्त इच्छाओं के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किये जा रहे हैं। धार्मिकों, भक्तों एवं कवियों की मनोवैज्ञानिक वृत्तियों का विश्लेषण होने लगा है। इसी क्रम में उन संस्कारगत मानव-प्रकृतियों का अध्ययन भी आवश्यक हो जाता है जिसने विश्व-साहित्य में एक बड़ो पौराणिक परम्परा (Mythic-Tradition) खड़ी कर दी है। जिस प्रकार मनुष्य की अवचेतन प्रवृतियों को प्रभावित करने में केवल उसकी अपनी दमित इच्छायें ही नहीं, अपितु उसका सांस्कृतिक परिवेश एवं परम्परागत अवधारणाएँ भी कार्य करतो हैं। भारतीय पौराणिक साहित्य मात्र कुछ व्यक्तियों की इच्छा का प्रतिफल न होकर मानवीय संस्कृति की एक इकाई में निहित पारम्परिक आस्था, विश्वास, संकल्प, समाज-चेतना, राजभक्ति आदि का एक सम्मिलित रूप है। यग ने उसे 'सामहिक-चेतन' (C..llective Consciousness) को संज्ञा प्रदान की।' अवचेतन मन में इन सभी की एकत्रित अवस्था को ‘सामूहिक अवचेतन' भी कहा जा सकता है। __ इस दृष्टि से यदि पौराणिक साहित्य पर विचार किया जाय तो यह प्रतीत होगा कि पौराणिक साहित्य के उपादान भी मन के "सामूहिकचेतन" और "सामूहिक अवचेतन" की तरह विभिन्न युगों के आवरणों में आवेष्ठित उस सामूहिक चिन्तन धारा को व्यक्त करते हैं, जिसमें अवचेतन मन के विचारों को तरह शृखलाबद्ध या विशृखल दोनों प्रकार को परम्परागत अवधारणायें सन्निहित हैं और जो भारतीय साहित्य, दर्शन, विज्ञान, मनोविज्ञान और कला में पृथक् या मिश्रित सभी रूपों में व्यक्त हुई है। अतः अवचेतन का रहस्योद्घाटन करने के लिये जिन मनोवैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जा रहा है, उन्हीं विधियों का प्रयोग पौराणिक तथ्यों के उद्घाटन के लिये भी समीचीन प्रतीत होता है। निश्चय हो इन पौराणिक उपादानों का वैज्ञानिक समाधान खोजने में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं । अतः विज्ञान या दर्शन के क्षेत्र में जिन विचारधाराओं को लेते हैं, उनमें से अधिकांश का विश्लेषण और अध्ययन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से आवश्यक है। अवतारवादी धारणा में कुछ ऐसे तथ्य मिलते हैं जिनका मानवशास्त्रीय ढंग से अध्ययन करना अनुचित नहीं होगा। यद्यपि बाह्यतः मानवशास्त्र और अवतारवाद में कोई वैज्ञानिक सम्बन्ध प्रतीत नहीं १. युग साइकोलोजी एण्ड इट्स सोशल मीनिंग, पृ० ५३-५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy