________________
अवतार की अवधारणा : २३५
ही ईश्वर को अवधारणा की व्याख्या की है। जिसके परिणामस्वरूप उनके ईश्वर सम्बन्धी दृष्टिकोणों और विचारों में बहुत विभिन्नता रही है। फ्रायड स्वयं ईश्वर में विश्वास नहीं करता है। फिर भी वह प्राचीनतम ईश्वर की अवधारणा से अवश्य प्रभावित हुआ है।' धार्मिक मनोवृत्ति को एडलर ने एक प्रकार की कायरता कहा है; क्योंकि कुछ लोग अपने दुःख को ईश्वर के ऊपर फेंकना चाहते हैं, इसका कारण यह है कि वे उसे अत्यधिक विश्वास एवं श्रद्धा से पूजते हैं तथा उससे व्यक्तिगत एवं पारिवारिक सम्बन्ध भी जोड़ते हैं।
धर्म एवं ईश्वर के प्रति अविश्वास रखने वाले इन मनोवैज्ञानिकों के अलावा युग और मैक्डूगल के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं जिनकी धर्म और ईश्वर के प्रति आस्था रही है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ईश्वरीय अवतरण की अवधारणा कठिनाई के क्षणों में मनुष्य में एक आत्मविश्वास उत्पन्न करती है तथा यह विश्वास दिलाती है कि वह नितान्त एकाकी नहीं है कोई अदृश्य शक्ति उसकी सहायक है, जो उसके उद्धार हेतु प्रयत्नशील है तथा विश्व को दुष्टों से त्राण दिलाती है। इस प्रकार मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अवतारवाद का मूल्य यही है कि वह मनुष्यों में एक ऐसा विश्वास जागृत करता है, जिसके कारण मनुष्य कठिनता के क्षणों एवं पीड़ा तथा अत्याचार की दशा में अति निराश नहीं होता है । १५. अवतारवाद की अवधारणा का वैज्ञानिक विश्लेषण
आधुनिक युग में ज्ञान-विज्ञान के विकास के फलस्वरूप तथ्यों का अध्ययन वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रणाली में किया जाने लगा है, यों तो विज्ञान एवं मनोविज्ञान दोनों का क्षेत्र पथक्-पृथक् है फिर भी अध्ययन विधि की दृष्टि से दोनों का एक दूसरे पर प्रभाव पड़ा है।
अवतारवाद की अवधारणा साहित्य, दर्शन, जैवविज्ञान, मनोविज्ञान कला आदि ज्ञान-विज्ञान की विविध शाखाओं से सम्बद्ध होने के कारण अपना अतशास्त्रीय महत्व रखती है।
आज मनोविज्ञान में मनुष्य की अचेतन और अवचेतन प्रकृतियों का व्यापक अध्ययन हो रहा है । अनेक मनुष्यों की दमित कुठाओं, वासनाओं १. मोजेज मोनो, पृ० २०४ २. अन्डर ह्यू० नैचर, पृ० २६३
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org