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' अवतार को अवधारणा : २३३
अनुभव कर अपने साहस के द्वारा उनपर विजय प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मनुष्य को भय से विमुक्ति दिलाने के लिए, उसमें साहस का संचार करने के लिए तथा उसकी भावनाओं को चरम अभि. व्यक्ति देने के लिए ईश्वर की अवधारणा मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। १४. अवतारवाद की अवधारणा का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
मनुष्य के मन का नैतिक द्वन्द्व भी उसे ईश्वर में आस्था रखने के लिए प्रेरित करता है। यह नैतिकता के जीवन्त आदर्श के रूप में ईश्वर को ग्रहीत करता है | इस प्रकार शिवत्व रूप ईश्वर में विश्वास नैतिक आदर्श की अनुभूति का युक्तिकरण ( Intellectualisation ) है। कभी-कभी मनुष्य यह अनुभव करता है कि जब तक ईश्वर में विश्वास नहीं करता, उसके आदेशों के अनुरूप आचरण नहीं करता, तब तक उसका कल्याण नहीं हो सकता। यही विश्वास नैतिक चरित्र को सुदृढ़ करता है। इसी को मनोवैज्ञानिक ‘इच्छा-पूर्ति' (wishfulfilment) की प्रक्रिया मानते हैं ।
धार्मिक भावनात्मक अनुभूति का एक अंग भी है । राबर्ट एच० थाउलेस ने आस्था, विश्वास, भावना एवं संवेग के द्वारा ईश्वर के प्रत्यय का विश्लेषण किया है । उसने धार्मिक अनुभूति के तीन रूप माने हैं।'
१. पाप से क्षम्य होने को भावना । २. प्रत्यक्ष अनुभति ।
३. विश्वास को निश्चयता। (१) पाप से क्षम्य होने की भावना ___मनुष्य में निहित पशुत्व अथवा उसकी वासनायें उसे अपनी येन-केनप्रकारेण पूर्ति के लिए विवश करती हैं। वासनामय जीवन में ही पाप की अवधारणा का जन्म होता है। मनुष्य की यह विवशता है कि कितना भी प्रयत्न करे, किन्तु वासनामय जीवन से एकदम ऊपर नहीं उठ सकता। किन्तु वासनाओं को पूर्ति उसके मन में यह भाव भी जागृत करती है कि वह पापी है, इस स्थिति में वह एक ऐसी सत्ता की खोज करता है जो निष्कपट हृदय से उसके सामने प्रस्तुत होने पर, उसके पापों को क्षमा कर सके । पाप करना मानवीय प्रकृति की व्यवस्था है, किन्तु वह उससे मुक्त . होना भो चाहता है और यहीं वह एक ऐसे ईश्वर को सत्ता को स्वीकार करता है जो उसके पापों को क्षमाकर, उसका उद्धार कर सके। १. साइकॉलाजी एण्ड रिलीजन ( युग ), पृ० ४०
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