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अवतार को अवधारणा : २३१
पुत्रों में "हरि" नाम के पुत्र का विवरण " नारायणीयोपाख्यान" में मिलता है ।' हरे रंग के कारण नारायण को हरि कहा जाता है। गीता में हरि शब्द विश्व रूप में प्रयुक्त हुआ है । विष्णु जब अविद्या और अज्ञान को दूर करते हैं तब हरि कहलाते हैं । विष्णुपुराण में हरि का अवतरण हर्या के गर्भ से बताया गया है । "
उपरोक्त तथ्यों से हरि अवतार का गज-ग्राह की कथा से कोई सम्बन्ध परिलक्षित नहीं होता है । परन्तु भागवत के चौबीस अवतारों की अवधारणा में गज-ग्राह से सम्बद्ध हरि गरुड़ पर चढ़कर हाथ में चक्र लिए गज की रक्षा करते प्रतीत होते हैं ।
इस प्रकार एक ओर तो हरि की हरिणी - गर्भ से उत्पत्ति बताई गई है तो दूसरी ओर हरि के उपास्य एवं विग्रह रूप का वर्णन किया गया है । गजेन्द्र हरि अवतार में एक विशेषता यह परिलक्षित होती है कि अन्य अवतारों में तो विष्णु गो, देवता एवं पृथ्वी की पुकार पर विभिन्न रूपों में प्रकट होकर रक्षा करते हैं पर गजेन्द्र-हरि में साक्षात् हरि एक पशु की प्रार्थना पर प्रकट होकर उसका उद्धार करते हैं ।
१. महाभारत शान्तिपर्व ३३४/८-९ २ . वही, शान्तिपर्व ३४२/६८
३. एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरि: । दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम् ॥ तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरेः । विस्मयोमे महान् राजन्हृष्यामि च पुनः पुनः ॥ ४. कालनेमिनिहा वीरः शौरिः शूरजनेश्वरः ।
त्रिलोकात्मा त्रिलोकेशः केशवः केशिहा हरिः ॥
- विष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् संख्या ८२
- विष्णुपुराण ३ / १ / ३९
५. सामसस्यानतरे चैवसम्प्राप्ते पुनरेषहि । हर्यायां हरिभिस्सार्धं हरिरेव बभूतव ह ।। ६. अन्तः सरस्युरुबलेन पदे गतहीतो ग्राहेण यूथपतिरम्बुजहस्त आर्तः । आहेदमादिपुरुषाखिललोकनाथ तीर्थश्रवः श्रवणमङ गलनामधेय श्रुत्वा हरिस्तमरणार्थिनमप्रमेयश्चकायुधः पतगराजभुजाधिरूढः । चक्रेण नक्रवदनं विनिपाद्य तस्माद्धस्ते प्रगृह्य भगवान् कृपयोजहार ॥ - भागवत २ / ७।१५-१६
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-- गीता ११ / ९
- वही १८/७७
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