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________________ २३० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन है।' महाभारत में मनु को विवस्वान् का पुत्र कहा गया है। इन्हीं के द्वारा सूर्यवंश या मनुवंश का उद्गम एवं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्णों का वर्गीकरण हुआ; ऐसा कहा गया है ।२ गीता में चार मनु ईश्वर की विभूति माने गये हैं। विष्णुपुराण में सभी राजा विष्णु के अंशावतार एवं मनुवंशी कहे गये हैं। भागवत में अवतारों की अवधारणा की चर्चा में ऋषियों और देवताओं के साथ मनु एवं मनुपुत्रों को भी विष्णु का कलावतार कहा गया है।" उपयुक्त आख्यानों से इतना तो स्पष्ट लक्षित होता है कि चौबीस अवतारों की अवधारणा में गृहीत होने से पूर्व मनु एवं मनुवंशियों को ईश्वर को विभूति, अंश एवं कलावतार माना जा चुका था। भागवत के २४ अवतारों में इनके अवतारवादी रूप के साथ इनका उपास्य-लीलावतार रूप भी स्पष्ट दिखाई देता है। क्योंकि इसमें वे स्वायम्भुव आदि मन्वन्तरों में मनुवंश ही रक्षा करते हैं एवं साथ ही दुष्ट राजाओं का संहार करते हुए प्रस्तुत किये गये हैं। गजेन्द्र हरि अवतार सभी अवतारों का अवश्य ही कुछ न कुछ प्रयोजन होता है । गजेन्द्रहरि अवतार में भी भक्तोद्धार की भावना के तत्त्व स्पष्ट दिखाई देते हैं। यहाँ पर हमें विष्णु या हरि के उपास्य एवं विग्रह रूप के दर्शन होते हैं। महाभारत में विष्णु के "हरि" अवतार के साथ ही अन्य स्थल पर कृष्ण के द्वारा हरि अवतार लेने का विवरण मिलता है। धर्म के चार १. फकुहर पृ० ८१; उद्धृत म० सा० अ०, पृ० ४६६ २. महाभारत, नादिपर्व ७५/१३-१४ ३. महर्षयः सप्तपूर्वे चत्वारो मनवस्तथा। मद्भाव मानसा जाता येषा लोक इमाः प्रजा ।। -गीता १०/६ ४. इत्येष कथितः सम्यङ्ग गानोवंशो मया तव । यत्र स्थितिप्रवृत्तस्य विष्णोरंशांशका नृपाः ।। -विष्णुपु० ४।२४।१३८ ५. भागवत १।३।२७ ६. वही, २।६।४५ ७. वही, २।७।२० ८. महाभारत, वनपर्व १२/२१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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