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________________ अवतार को अवधारणा : २२९ के आधार पर पौराणिक कथानक का रूप दिया गया हो । भागवत में ब्रह्मा द्वारा हयग्रीव अवतार ग्रहण करने का भागवत में हयग्रीवावतार द्वारा मधु-कैटभ को करना मुख्य प्रयोजन बताया गया है । " उल्लेख मिलता है । पुनः मारकर वेदों का उद्धार इस प्रकार २४ अवतारों की अवधारणा में हयग्रीवावतार का मुख्य प्रयोजन दुष्टों का नाशकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करना है । अस्तु हयग्रीवावतार में भी भगवान् के अवतरण का प्रयोजन अन्य अवतारों की तरह धर्म का नाश कर धर्म की रक्षा करना रहा है । 1 पुनः भागवत के द्वितीय स्कन्ध अध्याय ७ में भी भगवान् के चौबीस लीला - अवतारों की कथा कुछ अन्तर के साथ वर्णित है, मात्र अन्तर इतना है कि प्रथम स्कन्ध, अध्याय - ३ में वर्णित चौबीस अवतारों में से नारद एवं मोहिनी अवतारों के स्थान पर मनु एवं चक्रपाणि ( गजेन्द्र- हरि) अवतारों को लिया गया है । अतः यहां पर दोनों अवतारों की विशद चर्चा करना उपयुक्त होगा । मनु अवतार भागवत के २४ अवतारों में मनु को भी अवतार गया है । भागवत में मनु का अवतार दो रूपों में व्यक्तिगत रूप में विष्णु के अवतार कहे गये हैं, विभिन्न मन्वन्तर में विभिन्न अवतार माने गये हैं । रूप में ग्रहण किया मिलता है, एक तो तो वहीं दूसरी ओर पौराणिक मनुओं का उल्लेख ऋग्वेद संहिता में 'मनु वैवस्वत', 'मनु संवरण', 'मनु आप्सव' और 'चाक्षुष मनु' के नाम से मिलता है, जिन्हें सूक्तों का रचयिता कहा गया है । ४ शतपथ ब्राह्मण और छान्दोग्योपनिषद् में भी मनु का नाम मिलता है । गीता के ज्ञान प्राप्ति के प्रसंग में मनु का उल्लेख पाया जाता है । * भारतीय साहित्य में "मनुस्मृति" की रचना का सम्बन्ध मनु से बताया गया है । फकुर ने इसका रचनाकाल २०० ई. पू. से २०० ई. तक माना Jain Education International १. भागवत ७/९ / ३६-३७; २/७/११ २. ऋग्वेद ८/२७ २ / १३, ९/१०६, १/१०६; द्रष्टव्य म० सा० अ०, पृ० ४६६ ३. छान्दोग्योपनिषद् ६ / ११ / ४; शतपथ ब्राह्मण १/८/१/१; द्रष्टव्य वही ४. इमं विवस्वते योग प्रोक्तवानहमव्ययम् । विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्याकवेऽब्रवीत् ॥ - गीता ४ / १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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