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१४. नरसिंह अवतार
१५. वामन अवतार
अवतार की अवधारणा : २२५
इन सभी की विशद चर्चा पहले की जा चुकी है।
१६. परशुराम अवतार
१७. व्यास अवतार
अवतारों की कोटि में जिन विभूति सम्पन्न व्यक्तियों को ग्रहण किया गया है, उनमें कृष्णद्वैपायन व्यास भी एक हैं। वैसे तो व्यास शब्द भारतीय साहित्य में एक समुदाय विशेष का बोध कराता है, परन्तु यहां व्यास से तात्पर्य कृष्णद्वैपायन व्यास से है । अथर्ववेद संहिता एवं ब्रह्मसूत्र के रचयिता वादरायण को पौराणिक वेदव्यास से अभिहित किया गया है । ' तैत्तिरीय आरण्यक में व्यास पाराशर्य का उल्लेख मिलता है । डॉ० राधाकृष्णन् ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री आफ इण्डियन फिलोसोफी में कहा है कि " भारतीय परम्परा में शंकर, गोविन्दानन्द वाचस्पति, आनन्दगिरि आदि ने ब्रह्मसूत्र के कर्ता वादरायण और व्यास को एक ही माना है तथा रामानुज, माधव, वल्लभ और बलदेव ने भी उक्त कथानक का समर्थन किया है ।
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इस प्रकार विभिन्न व्यासों का भान होता है, परन्तु अवतारवाद के विकास क्रम में किस व्यास को २४ अवतारों की श्रृंखला में ग्रहण किया गया है, कहना कठिन है । महाभारत के रचयिता व्यास माने गये हैं, व्यास को भागवत एवं विष्णु पुराण में अवतार माना गया है । विष्णुपुराण में २८ व्यासों की एक परम्परा मिलती है। गीता में अवतारवाद की दृष्टि से मुनियों में व्यास को विभूति कहा गया है । विष्णुपुराण के अनुसार भगवान् प्रत्येक द्वापर में वेदों के विभाजन करने के लिये व्यास रूप में अवतीर्ण होते हैं एवं भागवत में व्यास को योगी तथा भगवान् का कलावतार कहा गया है ।" पुन: भागवत में भगवान् के व्यासावतार रूपों का वर्णन मिलता है । '
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१. अथर्ववेद संहिता ४/४/७/६१ तथा ७/३९ : उद्धत -म० सा० अ०,
पृ०
२. तैत्तिरीय आरण्यक १/९/२ : उद्धत - वही
३. हिस्ट्री आफ इण्डियन फिलोसोफी, जि० २, सं० १९२७, पृ० ४३३ ४. महाभारत, आदिपर्व ३६ / ६८, विष्णुपुराण ३/३/८-२०; गीता १० / ३७ ५. विष्णुपुराण ३/३/५
६. भागवत १ / ३ / २१; २/७/३६
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