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________________ २२४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन दिलाने का वर्णन है।' इसी अवतार में उन्होंने आयुर्वेद का प्रवर्तन किया। भागवत के एकादश स्कन्ध में औषधियों की रक्षा के निमित्त धन्वन्तरि अवतार का उल्लेख न कर मत्स्यावतार बताया है। यहाँ पर यह कहना तो सम्भव नहीं है कि दोनों धन्वन्तरि का पृथकपृथक अस्तित्व रहा है अथवा एक । परन्तु इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि पौराणिक समुद्र-मन्थन से उत्पन्न धन्वन्तरि को ऐतिहासिक काशिराज के पुत्र धन्वन्तरि से सम्बद्ध कर दिया गया होगा। अतः धन्वन्तरि को अवतारवादी दृष्टिकोण से विष्णु के चौबीस अवतारों में गृहीत किया गया। यहाँ पर उनके अवतरण का मुख्य प्रयोजन सांसारिक प्राणियों को दुख-दर्द एवं रोग से विमुक्ति दिलाना रहा है। १३. मोहिनी अवतार भगवान् के मोहिनो रूप में अवतरित होने का विवरण देवासुर-संग्राम के अनन्तर ममुद्र-मन्थन की कथा से सम्बद्ध है। समुद्र-मन्थन से उपलब्ध रत्नों में लक्ष्मी और अमत की प्राप्ति के लिए देव-दानवों में पुनः संघर्ष की स्थिति होने पर नारायण के मोहिनी-माया द्वारा सुन्दर रूप बनाकर दानवों को छलने का उल्लेख है। विष्णुपुराण में भी मोहिनी का यही रूप है। भागवत में मोहिनी को १३वें अवतार के रूप में माना गया है एवं उनका मुख्य प्रयोजन दैत्यों को मोहित कर देवताओं को अमृत पिलाना रहा है।" इस प्रकार मोहिनी अवतार का मुख्य प्रयोजन देवताओं को अमृत प्रदान कर असुरों पर विजय प्राप्त कराना रहा है। १. धन्वन्तरिश्च भगवान् स्वयमेव कीर्तिर्नाम्ना नृणां पुरुरुजां रुज आशु हन्ति । यज्ञे च भागममृतायुरवावरुन्ध आयुश्च वेदमनुशास्त्यवतीर्य लोके ॥ -भागवत २७/२१ २. भागवत ११/४/१८ ३. 'ततो नारायणी मायां मोहिनी समुपाश्रित । ___स्त्रीरूपमद्भुतं कृत्वादानवानमिसंश्रितः ॥ ____-महाभारत, आदिपर्व १८/४५ ४. विष्णुपुराण १/९/१०७-१०९ ५. भागवत १/३/१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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