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________________ अवतार की अवधारणा : २२३ के जोड़े को विष्णु एवं लक्ष्मी का अंशावतार माना है।' पृथु की उत्पत्ति का संकेत हमें केवल विष्णुपुराण में ही परिलक्षित होता है। सभी अवतारों के अवतारीकरण या अवतरण का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य होता है । रामकृष्ण, परशुराम, बुद्ध आदि अवतारों का मुख्य उद्देश्य धर्म की स्थापना करना था। इसी प्रकार राजा पृथु को भी कृषि एवं खनिज के महत्वपूर्ण अनुसन्धान के कारण अवतार कहा गया। भागवत में पृथु को विष्णु की भुवन-पालिनी कला का एवं उनकी पत्नी अचि को लक्ष्मी का अवतार कहा गया है। इस प्रकार युगल आविर्भाव के कारण चौबीस अवतारों में पथ का अवतार अपना विशिष्ट स्थान रखता है। १०. मत्स्य-अवतार । इन दोनों का विस्तृत विवरण हम ११. कच्छप ( कूर्म ) अवतार दसावतारों के अन्तर्गत दे चुके हैं। १२. धन्वन्तरि अवतार वाल्मीकि रामायण एवं विष्णुपुराण में उनके आयुर्वेद के ज्ञान श्वेत वस्त्रधारी धन्वन्तरि के रूप में प्रकट होने का उल्लेख है। यहाँ उन्हें विष्णु से सम्बद्ध नहीं कहा गया है । मत्स्यपुराण में भगवान् धन्वन्तरि को आयुर्वेद का प्रजापति कहा गया है।" __भागवत में समुद्रमन्थन की कथा में भगवान् द्वारा धन्वन्तरि के रूप में अमृत लेकर समुद्र से प्रकट होने का उल्लेख है।' पुनः भागवत् में भगवान् द्वारा धन्वन्तरि रूप में अवतरित होकर देवताओं को अमृत पिलाकर अमर करने का उल्लेख है साथ ही दैत्यों से उनके यज्ञभाग को १. भागवत ४/१५/१-३ २. विष्णुपुराण १/१३/३८-३९ ३. भागवत ४/१५/३ ४. 'ततो धन्वन्तरिदेवः श्वेताम्बरधरस्सयम् । विभ्रत्कमण्डलु पूर्णममृतस्य समुत्थित ॥' -विष्णुपुराण १/९/९८ 'अथ वर्षसहस्त्रेण आयुर्वेदमयः पुमान् । पूर्व धन्वन्तरि म अप्सराश्च सुवर्चसः ॥ -वाल्मीकि रा० १/४५/३१-३३ ५. मत्स्यपुराण २५०/१ ६, 'घान्वन्तरं द्वादशवं त्रयोदशमेव च' -भागवत १/३/१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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