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________________ २२२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन सन्यासी एवं उर्ध्वरेता मुनियों को धर्म का उपदेश देने के लिए प्रकट हुए थे। __ भागवत के चौबीस अवतारों की सूची में विशिष्ट विभूतियों-धर्मप्रवर्तक, अन्वेषक, आदर्श-राजा, विचारक, तपस्वी का समावेश हुआ है। दिगम्बर मुनियों के धर्मप्रवर्तक ऋषभ को भी इसी प्रयोजन से २४ अवतारों में गृहीत किया गया। इस प्रकार भागवत में उनके अवतार का प्रयोजन स्पष्ट रूप से लक्षित होता है। ऋषभदेव के अपने विशिष्टि आचरण एवं महापुरुषों के लक्षणों से युक्त शरीर के कारण वैष्णवों ने उन्हें विष्णु के अवतार-रूप में स्थान दिया। ९. पृथु अवतार ऋग्वेद में राजा पृथु का उल्लेख मिलता है। विष्णुपुराण में पृथु को विष्णु का अवतार कहा गया है। साथ ही विभिन्न पुराणों-विष्णुपुराण, वायुपुराण, अग्निपुराण, ब्रह्मपुराण और मत्स्यपुराण में पृथु की उत्पत्ति अत्याचारी वेन की भुजा से बताई गई है। राजा पृथु के दाहिने हाथ में विद्यमान चक्र के आधार पर उन्हें विष्णु का अंशावतार कहा गया है।" राम-कृष्ण अवतारों में दुष्ट व्यक्तियों का संहार ही मुख्य प्रयोजन रहा है, इसके पिपरीत पृथु अवतार में वे पृथ्वी को भयभीत कर उससे औषधि का दोहन करते हैं। इस प्रतीकात्मक कथा से राजा पृथु का कृषि एवं खनिज का आदि प्रवर्तक होना सिद्ध होता है। भागवतपुराण में विभिन्न स्थलों पर उनके रूपों एवं कथाओं का एक सा विवरण मिलता है। परन्तु भागवत के चौथे स्कन्ध में वेन की भुजाओं से उत्पन्न स्त्री-पुरुष १. भागवत ५/३/२० २. ऋग्वेद १०/१४८ ३. विष्णुपुराण ४/२४/१३८ ४. विष्णुपुराण १/१३; वायुपुराण अ० ६२-६३; अग्निपुराण अ० १८; ब्रह्मपुराण अ० ४; मत्स्यपुराण अ० १० ५. विष्णुपुराण १/१३/४५ ६. वही, १/१३/८७-८८ ७. भागवत १/३/१४; २/७/९; ४/१४-१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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