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________________ . अवतार की अवधारणा : २२१ 'यज्ञविष्णु', 'यज्ञपुरुष' और 'गर्भ' एवं पुरुष की उत्पत्ति का उल्लेख मिलता है।' __उपयुक्त तथ्यों के आधार पर यज्ञ के मानवीकृत रूप का विकास दृष्टिगोचर होता है। कालान्तर में इसी को पुराणकारों ने विष्णु का रूप माना । भागवत में विष्णु के यज्ञ-पुरुषावतार का उल्लेख हुआ है इस रूप में वे यज्ञ की सफलता के प्रतीक ही नहीं बल्कि उपास्य विष्णु से भी सम्बद्ध प्रतीत होते हैं। ८. ऋषभ-अवतार ___ भागवत में राजा नाभि एवं रानी महादेवी के पुत्र ऋषभ को विष्णु का अवतार कहा गया है। इस अवतार में ऋषभ देव ने इन्द्रिय निग्रह एवं योगचर्या द्वारा परम हंसों के मार्ग का प्रतिपादन किया, ऐसा उल्लेख है। विष्णुपुराण में नाभिपुत्र ऋषभ का उल्लेख मिलता है। महाभारत में 'ऋषभ गीता' नाम के प्रकाश में ऋषभ ऋषि का उल्लेख तो मिलता है, किन्तु उनके अवतारी होने का कोई संकेत नहीं मिलता। ___ इस प्रकार ऋषभ के अवतारी होने के बारे में कुछ निश्चित कहना कठिन है। फर्कुहर ने भागवत का रचनाकाल ९०० ई० माना है। समकालीन जैन साहित्य में ऋषभ के दिव्य जन्म का उल्लेख मिलता है इससे हम कह सकते हैं कि भागवत में ऋषभ का अवतार रूप ग्रहीत होने के पूर्व हो जैन साहित्य ने ऋषभ के दिव्य जन्म का विवरण उपलब्ध था। इस सन्बन्ध में जैन ग्रन्थों का प्रभाव भागवत पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है क्योंकि भागवत में कहा गया है कि ऋषभदेव दिगम्बर १. वृहदारण्यकोपनिषद् ६/२/१२-१३; छा० उ० ५/८/९-२; द्रष्टव्य-मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ४६९ २. भागवत ४/७/१८ ३. वही, ८/१३/२० ४. वही, १/३/१३; २/७/१० ५. विष्णुपुराण २/१/२७ ६. महाभारत, शान्तिपर्व १२५-१२८ ७, फकुहर, पृ० २३२; द्रष्टव्य म० स० अ०, पृ० ४७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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