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अवतार को अवधारणा : २१९
इस प्रकार महाभारत में कपिल के जो विविध रूप हमें दिखाई देते हैं उनसे यह निश्चित कर पाना कठिन है कि सांख्यवेत्ता आग्नेय एवं सगर-पुत्रों को भस्म करने वाले कपिल एक ही हैं या भिन्न-भिन्न, क्योंकि विष्णुपुराण एवं भागवत में इनके पृथक्-पृथक् रूपों का वर्णन उपलब्ध है, विष्णुपुराण में कर्दम प्रजापति के "शंखपाद" नाम के पुत्र का उल्लेख मिलता है। इससे सांख्यवेत्ता कपिल का आभास होता है क्योंकि बहत सम्भव है कि सांख्य का विकृत रूप शंख हो गया हो। पुनः विष्णुपुराण में पुरुषोत्तम के अंश रूप कपिल का सगर के पुत्रों को भस्म करने का आख्यान मिलता है। वहाँ उनके सांख्यवेत्ता होने का कोई उल्लेख नहीं है। भागवत में एक अन्य स्थल पर सिद्धों के स्वामी कपिल द्वारा आसुरि को उपदेश देने का उल्लेख मिलता है। भागवत में कर्दम प्रजापति के यहाँ कपिलरूप के अवतार ग्रहण करने, सांख्य मत का उपदेश तथा सांख्य शास्त्र की रचना करने का उल्लेख है। भागवत में सगर के पुत्रों को भस्म करने वाले कपिल को भगवान् का अवतार कहा गया है। इस प्रकार भागवत के इन रूपों में कोई साम्य नहीं है।
हम देखते हैं कि महाकाव्यों एवं पुराणों में कपिल को कथा का विकास पृथक्-पृथक् है, परन्तु चौबीस अवतारों में कर्दम पुत्र एवं सांख्यवेत्ता कपिल को ही स्थान प्राप्त हुआ है। भागवत के विवरणों से सांख्य प्रवर्तक कपिल को ही अवतार माना गया है।' ६. दत्तातेय-अवतार
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से दत्तात्रेय अवतार की अवधारणा नर-नारायण की अपेक्षा अधिक परवर्ती प्रतोत होती है । वैदिक साहित्य एवं वैष्णव महाकाव्यों में इनका उल्लेख नहीं हुआ है। गीता एवं विष्णुसहस्त्रनाम में भी इनका उल्लेख नहीं प्राप्त होता है। भागवत को सभी सूचियों में
१. विष्णुपुराण १/२२/१२ २. विष्णुपुराण ४/४/१२-१६ ३. भागवत १/३/१० ४. वही, २/७/३; ३/१२/३; ३/२४/३० ५. वही, ९/८ ६. वही, १/२/१०; २/७/३
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