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________________ अवतार की अवधारणा : २१७ करने के लिये कठिन तप किया । ऋग्वेद के "पुरुष सूक्त" के रचनाकार नारायण ऋषि कहे गये हैं ।' शतपथ ब्राह्मण में पुरुष से स्वरूपित "पुरुष नारायण" पांचरात्र यज्ञ के कर्ता एवं सबका अतिक्रमण करने वाले सर्वव्यापी और सर्वात्मा कहे गये हैं । " तेत्तिरीय आरण्यक में नारायण को विष्णु एवं वासुदेव से सम्बद्ध बताया गया है। महाभारत में अर्जुन एवं कृष्ण को नर एवं नारायण का अवतार कहा गया है। साथ ही अर्जुन नर के अतिरिक्त इन्द्र के भो अवतार कहे गये हैं । महाभारत में एक अन्य स्थल पर नर के अर्जुनरूप में इन्द्र के अंश से उत्पन्न होने का आख्यान उपलब्ध है, वहाँ वे नारायण के सखा एवं पाण्डु पुत्र कहे गये हैं ।" यहाँ पर हमें नर, इन्द्र एवं अर्जुन का अभिन्न सम्बन्ध प्रतीत होता है । ऋग्वेद की कुछ ऋचायों में इन्द्र एवं नर की एकरूपता स्पष्ट होती है । इन तथ्यों के अवलोकन से नर-नारायण और इन्द्र- विष्णु इन दोनों शब्दों के योग का परस्पर सम्बन्ध स्पष्टतया स्वरूपित होता है। वैदिक साहित्य में इन्द्र विष्णु की अपेक्षा नर-नारायण का सम्बन्ध उतना स्पष्ट नहीं है । यदि इनको प्राचीन वैदिक ऋषि मानें तो इनका अस्तित्व भिन्न प्रतीत होता है । कालान्तर में इन्द्र और नर तथा विष्णु और नारायण के एकीकरण के बाद इन्द्र एवं विष्णु के स्थान पर नर-नारायण शब्दों का संयुक्त रूप प्रचलित हुआ । इसको अंशतः पुष्टि महाभारत से होती है । " १. ऋग्वेद १०/९०/८ : उद्धृत - मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ४७६ २. "पुरुषो ह नारायणोऽकामयत्" ' - शतपथ ब्राह्मण १३/६/१/१ ३. " नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्, - तैत्तिरीय आरण्यक १०/१/५ ४. " भीमसेनं तु वातस्य देवराजस्यचार्जुनम् ” ५. " ऐन्द्रिर्नरस्तु भविता यस्य नारायणः सखाः । सोऽर्जुनेत्यभिविख्यातः पाण्डोः पुत्रः प्रतापवान || ६. महाभारत आदिपर्व ६७ /१११ ७. महाभारत, आदिपर्व ६७ /११७ "इन्द्रवो नरः सख्याय सेपुर्महो यन्तः सुभतये चकानाः । इन्द्रं नरः स्तुवन्तो ब्रह्मकारा ॥ " Jain Education International - महाभारत, आदिपर्व ६७ /११६ For Private & Personal Use Only - ऋग्वेद ६ / २९/१,४ www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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