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२१६ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
पनिषद् में नारद को अनेक विद्याओं का ज्ञाता कहा गया है। महाभारत शान्तिपर्व में नारद पर्वत ऋषि के मामा कहे गये हैं । महाभारत के इसी 13 पर्व में नारद तपस्या के फलस्वरूप विष्णुदर्शन प्राप्त करते हैं । तथा नारायण ऋषि से " एकान्तिक मत" का ज्ञान प्राप्त करने का उल्लेख है । इस प्रकार महाभारत में विष्णु और नारायण भक्त के रूप में नारद का चरित्र चित्रण किया गया है। गीता में देवर्षि नारद का उल्लेख दिव्य विभूतियों में है ।" वैष्णव एवं अन्य धर्मों के प्रवर्तकों के अवतारीकरण के साथ भागवत में देवर्षि नारद का तीसरा अवतार ऋषियों की सृष्टि में माना गया है । कालान्तर में जब वैष्णव एवं अन्य धर्मों में अवतारवाद की अवधारणा विकसित हुई, तब देवर्षि नारद को भी ईश्वर का अवतार मान लिया गया । इस अवतार में नारद के अवतार का मुख्य प्रयोजन सात्वत तन्त्र अथवा नारद पांचरात्र का उपदेश देना बताया गया है, परन्तु चौबीस लीलावतारों में नारद का नामोल्लेख नहीं है । ७
भागवत में वे दासी के पुत्र बताये गये हैं परन्तु वहीं प्रथम स्कन्ध में इनका सम्बन्ध प्रेमा-भक्ति से परिलक्षित होता है ।' भक्तों एवं प्रवर्तकों की परम्परा में ही नारद को विष्णु का अवतार माना गया है । अन्य अवतारों की अपेक्षा नारदावतार की अवधारणा अधिक प्रसिद्धि को नहीं प्राप्त हुई ।
४. नर-नारायण-अवतार
भागवत की तीनों सूचियों में नर-नारायण को उत्पत्ति धर्म की पत्नी दक्ष प्रजापति की कन्या मूर्ति के गर्भ से बतायी गई है ।" नर-नारायण ने अवतार लेकर ऋषि रूप में रहकर मन एवं इन्द्रियों पर संयम प्राप्त
१. छान्दोग्योपनिषद् ७ /१/१
२. महाभारत, शान्तिपर्व २८
३. वही, शान्तिपर्व १९० ४. वही, २३४ /४- ३३ ५. गीता १०/२६
६. भागवत १/३/८ ७. वही,
२/७
८. वही, १/५/२३, ३८-३९ ९. वही, १/३/९; २/७/६; ११/४/१६
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