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• अवतार की अवधारणा : २१५
विद्या का उपदेश देते हुए प्रस्तुत किये गये हैं । महाभारत के शान्तिपर्व में सन्, सनत्सुजात, सनन्द, सनन्दन, कपिल, सनातन, सनत्कुमार ब्रह्मा के सात मानस पुत्र कहे गये हैं । इन्हें निवृत्ति धर्मपालक, योग, सांख्य, धर्म के आचार्य, मोक्षाभिलाषी एवं पशुसिंह का विरोधी बताया गया है । विष्णुपुराण में एक "कौमार सर्ग" की व्याख्या की गई है । * भागवत पुराण में भगवान् चार ब्राह्मण- सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार के रूप में अवतरित होकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं ।" भगवान् के तप अर्थवाले "सन” नाम से युक्त सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार रूपों में अवतरित होकर क्षत्रियों को उपदेश देने का उल्लेख है । पुनः 1& भागवत में विष्णु के हंस, दत्तात्रेय, सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार और ऋषभ कलावतारों का उल्लेख मिलता है।
भागवत की परम्परा में इन्हें विष्णु के चौबीस अवतारों में स्थान प्राप्त हुआ है । सनकादि आत्मज्ञानियों की अपेक्षा विष्णु के भक्त अवतार विदित होते हैं।
२. वराह अवतार
वराहावतार की विशद व्याख्या हम पहले कर चुके हैं ।
३. नारद-अवतार
वैदिक और पौराणिक साहित्य में विभिन्न स्थानों पर नारद का उल्लेख पाया जाता है । ऋग्वेद और अथर्ववेद के कुछ सूक्तों के रचयिता "नारद पवंत" एवं "नारद कण्व" नाम के ऋषि कहे गये हैं। नारद के नाम का परिचय सामवेदीय परम्परा में भी मिलता है ।" छान्दोग्यो
१. छान्दोग्योपनिषद् ७/१/१ : द्रष्टव्य- म०स०अ०, पृ० ४८९
२. महाभारत, शान्तिपर्व ३४० / ७२-८२
३. वही, शान्तिपर्व ३४० / ७२-८२
४. विष्णुपुराण २/१/२५
५. भागवत १/३/६
६. वही २/७/५
७. वही १९/४/१७
८. ऋग्वेद ८/१३, ९/१०४ - १०५ अथर्ववेद ५/१९/१; १२/४/१६ उद्धत - मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ४९१
९. द्रष्टव्य - वही, पृ० ४९१
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