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२१४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन कल्पना भी बौद्धों के चौबीस और जैनों के चौबीस तीर्थंकरों की कल्पना के आधार पर हुई है', ऐसा प्रतीत हाता है । अवतार चौबीस ही क्यों?
अवतारों की संख्या चौबीस मानने के सम्बन्ध में विद्वानों में अनेक कल्पनाए हैं उनमें कुछ कल्पनाएँ अत्यन्त रोचक होने से नीचे दी जा रही हैं। वैदिक साहित्य में विष्णु को सूर्य भी कहा गया है, सूर्य का संवत्सर से घनिष्ट सम्बन्ध है । "संवत्सर" के चौबीस अंश (अर्द्धमास) अर्थात् पक्ष होते हैं । इन्हीं को विष्णु के चौबीस अंशावतार कहते हैं। ___'अरणि' जो कि यज्ञ में अत्यन्त उपयुक्त हैं वह विष्णु/यज्ञ की पत्नी कही गई है। उसका परिणाम चौबीस अंगुलि माना गया है, इसका चौबीस अक्षरों वाली गायत्री से भी घनिष्ट सम्बन्ध है । पत्नी-पति का अर्द्ध भाग होने से “अरणि" यज्ञ रूपी विष्णु का रूप ही है । यही विष्णु के चौबीस अंश या अवतार हैं।
विष्णु नारायण-अमरकोष में यज्ञ, संवत्सर और गायत्री का पुरुष से घनिष्ट सम्बन्ध कहा गया है। पुरुष के शरीर के चौबीस भाग कहे गये हैं।
अब हम चौबीस अवतारों की विशद व्याख्या श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कन्ध, अध्याय ३ के अनुसार करेंगे। १. सनत्कुमार-अवतार
सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार-इन चारों की गणना विष्णु के चौबीस अवतारों में को गई है। ऋग्वेद संहिता में चारों नाम दृष्टिगोचर नहीं होते हैं, परन्तु "कुमार" एक विशेष वर्ग के तपस्वियों के नाम के साथ जुड़ा दिखाई पड़ता है। ऋग्वेद में आग्नेय कुमार, आत्रेय कुमार, यामायन कुमार आदि नाम के तपस्वियों का उल्लेख मिलता है। वृहदारण्यकोपनिषद् के "याज्ञवल्कीय काण्ड" में सन्, सनातन और सनग का उल्लेख मिलता है। 'छान्दोग्योपनिषद् में सनत्कुमार नारद को ब्रह्म१. मध्यकालीन भारतीय संस्कृति (१९५१), पृ० १३ २. अमरकोश १/१/१८; द्रष्टव्य-वेदवाणी, वर्ष १४, अंक ५, पृ० १० ३. ऋग्वेद ५/२; ७/१०१; १०/९०५; उद्धृत, म० सा० अ०, पृ० ४८९ ४. बृहदारण्यकोपनिषद् २/६/३; द्रष्टव्य वही, पृ० ४८९
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