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अवतार को अवधारणा : २१३
भारत निवास के बाद अवतार रूप में कल्पित किए गए, यद्यपि इससे एक बात तो सुनिश्चित रूप से सिद्ध हो जाती है कि अवतारों की अवधारणा का विकास आर्यों के भारत में आने के पूर्व हो चुका था। यदि हम ऋषभ के अवतार की अवधारणा को लें, तो हम पाते हैं कि ऋषभ को वेदों में तो स्थान मिला ही है किन्तु उन्हें जैन परम्परा में प्रथम तीर्थंकर के रूप में स्वीकार किया गया है और इस प्रकार उन्हें सम्पूर्ण आर्य संस्कृति का आदि पुरूष माना जा सकता हैं।
निष्कर्ष रूप में मात्र हम इतना ही कहना चाहेंगे कि अवतारवाद को इस अवधारणा के बीज भारत के बाहर भी अत्यन्त प्राचीनकाल में उपस्थित थे। १२. अवतारों को चौबीस संख्या की अवधारणा
पुराणों में सर्वाधिक प्रचलित दशावतारों के अतिरिक्त 'भागवतपुराण' में भगवान् के असंख्य अवतार बताये गये हैं। कभी इनकी संख्या ‘बाइस', 'चौबीस' और कभी सोलहर बताई गई है। भागवत के दशम स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में दस और चालीसवें अध्याय में बुद्ध को जोड़कर ग्यारह अवतार बताये हैं।३।। __ भागवत के आधार पर लिखे गये एक अन्य ग्रन्थ "लघुभागवतामत" में अवतारों की संख्या पच्चीस मानी गयी है। सात्वत तन्त्र तो इससे भी आगे बढ़कर लगभग इकतालिस अवतारों की सूची प्रस्तुत करता है।'
भागवत में दशावतारों की अवधारणा के अतिरिक्त चौबीस अवतारों को अवधारणा भी प्रचलित रही है। भागवत को चौबीस अवतारों की इस कल्पना को इतिहासकारों ने बौद्धों और जैनों से प्रभावित माना है। श्री गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का कथन है-बुद्ध एवं ऋषभ को हिन्दुओं के अवतार में स्थान देने से प्रतीत होता है कि बौद्ध एवं जैन धर्म का प्रभाव हिन्दु धर्म पर पड़ा था इसलिए उनके प्रवर्तकों को विष्णु के अवतारों में सम्मिलित कर लिया गया। इसके चौबीस अवतारों को यह
१. श्रीमद्भागवत १/३/१-२६ २. वही ११/४/६; ११/४/१७-२२ ३. वही १०/२/४०; १०/४०/१७-२२ ४. लघुभागवतामृत पृ०७०, श्लोक ३२ ५. सात्वत तन्त्र द्वितीय पटल
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