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________________ २१२ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन ११. पारसियों में दस अवतार की अवधारणा पारसियों के धर्मग्रन्थ 'जेन्दावेस्ता', जिसे ईसा पूर्व छठी शताब्दी का माना जाता है, में वेरेथ्रुघ्न ( वृत्रहन् = इन्द्र ) के दस अवतारों का वर्णन मिलता है - १. वायु, २. ऋषभ या वृषभ, ३. अश्व, ४. ऊँट, ५. वराह, ६. कुमार, ७. कौआ, मेष, ९. मृग, १०. पुरुष । इन अवतारों में से कुछ का वर्णन प्राचीन संस्कृत साहित्य में आया है - दायु, वृषभ या ऋषभ, अश्व या 'हयग्रीव', वराह, कुमार या 'वामन' और पुरुष । 'सहि प्रत्यक्षं वरुणस्य पमुर्यन्मेषः । २ 'वारुणी च हि त्वाष्टी चाविः । ३ वरुण और त्वष्टा दोनों इन्द्र ( वृत्रहन् ), प्रजापति और विष्णु से अभिन्न कहे गये हैं । अतः 'जेन्दावेस्ता' के समान 'मेष' का विशिष्ट सम्बन्ध वेरे घ्न ( वृत्रहन् = इन्द्र ) के साथ प्राचीन संस्कृत साहित्य में भी प्रतिपादित है । भागवतपुराण में वराह, वामन, पुरुष, वृषभ और ह्यग्रीव का वर्णन मिलता है। उपर्युक्त विवरण से यह ज्ञात होता है कि पारसी और भारतीय आर्यों की मूल परम्परा एक ही थी, किन्तु कालान्तर में अलग-अलग देशों में विकसित होने के कारण उनमें परस्पर भेद हो गया । जेन्दअवेस्ता में इन्द्र के जिन दस अवतारों का वर्णन मिलता है उनमें ऋषभ, अश्व, हयग्रीव, वराह, कुमार या वामन पुरुष ऐसे नाम हैं, जो वैष्णव परम्परा में विष्णु के, जिन चौबीस अवतारों की कल्पना की गई है, उनसे मिलते हैं। इन्हें इन्द्र का अवतार मानने से यह भी सिद्ध होता है कि प्रारम्भ में इन्द्र ही महत्वपूर्ण देवता थे किन्तु कालान्तर में जब विष्णु महत्वपूर्ण देवता बन गए और अन्य सभी देवताओं को उनके अधीन मान लिया गया तब अवतारों की यह कल्पना भी उनके साथ जोड़ दी गई । वैसे जेन्द अवेस्ता में उल्लिखित इन अवतारों में परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध आदि के नाम नहीं मिलते हैं, इससे ऐसा लगता है कि ये सभी आर्यों के १. बहरामयस्त १/२७, डार्मेस्टेटर कृत अंग्रेजी अनुवाद २. शतपथब्राह्मण २/५/२/१६ ३. वही, ७/५/२/२० ४. भागवतपुराण १ / ३ / १-२६ : २/६/४१-४२ : ११ / ४ / ३ : १० / १२ / २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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