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________________ ६ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन प्रतिपादन हुआ। जैन साधना, बोद्ध साधना, और हिन्दू साधना एक दूसरे के काफी निकट हैं । मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा सम्बन्धी चार भावनाओं को जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन और योग दर्शन में समान रूप से स्वीकार किया गया है । इस प्रकार साधना पद्धति की दृष्टि से जैन, बौद्ध और हिन्दू परम्परा में बाह्य विभिन्नताओं के होते हुए भी मूलतः समरूपता है । मानवीय ज्ञान, मानवीय श्रद्धा और मानवीय आचरण की सम्यक् दिशा में नियोजित करना तीनों का लक्ष्य है । तीनों ही साधना पद्धतियों का मूलभूत लक्ष्य मनुष्य के राग भाव, तृष्णा या आसक्ति को समाप्त करना है । जहाँ जैन धर्म ने वीतरागता को जीवन का चरम साध्य बताया वहीं बौद्ध धर्म में वीततृष्ण होना ही साधना का चरम लक्ष्य माना गया और हिन्दू धर्म में - विशेष रूप से गीता में सम्पूर्ण शिक्षा का सार आसक्ति के प्रहाण को माना गया । वीत - राग, वीततृष्ण या अनासक्त जीवनशैली का निर्माण ही तीनों परम्पराओं का मूलभूत लक्ष्य रहा है। जिस प्रकार जैन धर्म का अन्तिम आदर्श वीतराग अवस्था को प्राप्त करना है, उसी प्रकार बौद्ध धर्म का अन्तिम आदर्श वीततृष्ण होना या अर्हत् अवस्था को प्राप्त करना है, हिन्दू धर्म में भी स्थितप्रज्ञ होने को जीवन का चरम आदर्श कहा जा सकता है । किंतु स्थितप्रज्ञ होने का अर्थ अनासक्त, वीतराग या वीततृष्ण होना ही है' | ऐसा व्यक्तित्व ही इन तीनों धर्मों में साधना का परम आदर्श रहा है और उसे ही धर्ममार्ग के प्रवर्तक रूप में स्वीकार किया गया है । ५. तीर्थङ्कर, बुद्ध या अवतार की अवधारणा का प्रयोजन संसार के प्रत्येक धर्म या साधना पद्धति का कोई न कोई प्रवर्तक अवश्य होता है । कोई भी धर्म किसी धर्म प्रवर्तक के द्वारा ही अस्तित्व में आता है । धर्म प्रवर्तक प्रथम तो स्वयं सत्य की अनुभूति करता है और फिर उस अनुभूत सत्य को उपदेशों के माध्यम से जन साधारण तक पहुँचाता है । प्रत्येक धर्म प्रवर्तक व्यक्ति, जीवन और जगत् के सम्बन्ध में अपना दर्शन प्रस्तुत करता है और वह यह बताता है कि जीवन क्या है, जगत् क्या है और जीवन का अन्तिम उद्देश्य क्या है तथा व्यक्ति को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक धर्म में धर्मप्रवर्तक अपना दर्शन, अपनी साधना पद्धति, अपनी समाज व्यवस्था और १. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग २, पृ० ५०३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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