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________________ २१० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन मिश्रित नरसिंह का अवतार हुआ। तत्पश्चात् पूर्ण पुरुष का बौना रूप वामनावतार होता है। परशुराम पुरुष के विकसित रूप तो हुए परन्तु स्वभाव से पशुओं की तरह हिंसक वृत्ति के थे। उनके बाद धनुष-बाण से स्वर्य एवं पर की रक्षा करने वाले राम का अवतार होता है, जिन्होंने अन्याय का प्रतिकार करने के लिए रावण के विरुद्ध बाण चलाये तथा मर्यादापूर्वक राज्य का संचालन किया, इसी से राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। फिर आठवें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण हुए हैं जिन्होंने अपने वात्सल्य से सभी को अपने वश में कर लिया तथा युद्ध में पाण्डवों की सहायता की। काका कालेलकर ने एनीबेसेंट के उपरोक्त लेख के आधार पर यह विचार व्यक्त किया है कि इसके बाद हिन्दू धर्म का विकास क्रम रुक गया। लेखक के मत एवं भारतीय दार्शनिकों के विचार का यह परिणाम रहा कि तथागत बुद्ध को नवें अवतार के रूप में अपना लिया, जिन्होंने थोड़ी अहिंसा चलाई । काका साहब ने मत व्यक्त किया कि इसके बाद पूर्ण अहिंसक समाज की रचना के लिहाज से भगवान् महावीर को १०वें अवतार में होना चाहिए, परन्तु हिन्दू धर्म ने कल्कि को १०वां स्थान दे दिया । तात्पर्य यह है कि विकास का जो क्रम अवतारवाद में था वह टूट गया। इसमें मानव के विकास की कथा रूपक और अलंकार के शब्द में प्रस्तुत हुई, इसमें शंका नहीं है। खोजा सम्प्रदाय के पीर सदाअलदीन ने अपनी पुस्तक में १०वां अवतार अली को बताया है। इस प्रकार खोजा सम्प्रदाय में भी विष्णु के दशावतार परम्परा को मान्यता दी गयी है। ____ जो कमियाँ हैं, वे वास्तव में हमारे विकास में प्रेरणा का कार्य करती है। मनुष्यों की इच्छायें भिन्न-भिन्न होती हैं और वे इच्छायें उन मानवों को अवनति की ओर ले जाती हैं। इसी को ठीक करने के लिए ईश्वर के अवतार की आवश्यकता होती है । यों तो सभी प्राणी ईश्वर की अभिव्यक्तियाँ हैं परन्तु उन सभी अभिव्यक्तियों को न लेकर कुछ विशेष गुणों से युक्त अभिव्यक्तियों को हम लेते हैं और उन्हें हम अवतार कहते हैं। मुख्य दस अवतार माने गये हैं क्योंकि यह जीवन के विकास के रास्ते दिखाते हैं । १. प्रीचिंग आफ इस्लाम : द्रष्टव्य अभिनन्दन ग्रन्थ (श्री पुष्कर मुनि उपाध्याय) ५० ३२३ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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