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________________ अवतार की अवधारणा : २०९ ३-मानव-पशु : नरसिंह ४-मानव रूप : वामन, परशुराराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि परन्तु भागवत् के २४ अवतार की अवधारणानुसार निम्न योनियों या कोटियों में ईश्वर ने अवतार ग्रहण किया है १-जन्तु : मत्स्य, कूर्म २-पशु : वाराह ३-पक्षी : हंस ४-मानव-पशु : नरसिंह, हयग्रीव ५-मानवरूप : सनकादि, नारद, नर-नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभदेव, राजा पृथु, धन्वन्तरि, मोहिनी, वामन, परशुराम, व्यास, राम, बलराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, और कल्कि । ९. अवतार की अवधारणा के सम्बन्ध में एनीबेसेंट के विचार डॉ० एनीवेसेंट ने अपनी पुस्तक 'अवतार' में अवतार की अवधारणा के विकास में सत्व, रज और तम गुणों को महत्वपूर्ण बतलाया है, क्योंकि प्रकृति में तीनों गुणों का सन्तुलित होना आवश्यक होता है। जैसे कि रजो गुण और तमो गुण का प्रभाव अधिक हो जाता है तो इन दोनों के मिश्रित प्रभाव से सतोगुण का ह्रास होने लगता है जिससे सत् गुण से सम्बन्धित सुख एवं शान्ति क्षीण होने लगती है। इस प्रकार प्रकृति में असन्तुलन की अवस्था के कारण अन्याय, अत्याचार, अनाचार आदि गुणों का प्रादुर्भाव हो जाता है। इसी असन्तुलन की अवस्था को सन्तुलित करने के लिए ईश्वर अवतार लेता है। ___ खनिज, वनस्पति एवं पशु आदि के अपने-अपने विकास के नियम होते हैं। नियम एक प्रकार का बल होता है जिससे सभी वस्तुओं पर नियन्त्रण किया जा सकता है और अपने को सुरक्षित रखा जा सकता है। मनुष्य के विकास के मार्ग को प्रशस्त करने के लिए ईश्वर स्वयं मनुष्य रूप में अवतरित हो मनुष्योचित व्यवहार करते हुए अपने जीवन को उच्च आदर्श की ओर ले जाते हैं। जिससे कि मनुष्य उनका अनुसरण करके अपने जीवन को आदर्श बना सकता है। अवतारों के निम्न क्रम से 'Evolution Theory' अर्थात् विकासवाद की झलक दिखाई पड़ती है। प्रथम मत्स्य अवतार जल में रहने वाला, कूर्म अवतार जल एवं थल में रहने वाला या चलने वाला, उसके बाद पूर्ण पशु अवतार वराह का हुआ, उसके पश्चात् आधा पशु और आधा मानव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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