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बुद्धत्व को अवधारणा : २०७
है।' अर्थात् असुरों के यज्ञ में विघ्न डालने हेतु विष्णु, बुद्ध रूप में अवतार लेते हैं।२ १०. कल्कि अवतार
दशावतारों में कल्कि के अवतार के भविष्य में होने वाले अवतार हैं, इस कारण उनका ऐतिहासिक रूप अस्पष्ट है। फिर भी साहित्यिक साक्ष्यों में कल्कि से सम्बन्धित राजाओं के नाम मिलते हैं। जैन एवं बौद्ध साहित्य में भी कल्कि का उल्लेख हुआ है। श्री के० वी० पाठक ने जैन ग्रन्थों के आधार पर कल्कि को अत्याचारी कहा है क्योंकि इसने जैनों पर कर लगाया था। इसको "चतुर्मुख कल्कि" एवं 'कल्किराज" के नाम से पुकारा गया है।३ बौद्ध साहित्य में होनसांग ने बौद्ध भिक्षुओं पर मिहरकूल के अत्याचारों की व्याख्या की है। इस प्रकार जैनों एवं बौद्धों पर अत्याचारी के रूप में कल्कि या मिहरकुल का उल्लेख ५२० ई० में मिलता है।
“सेकोद्येशटीका" में कल्क (पाप) का सम्बन्ध मैत्रेय से मानते हुए ब्राह्मण वर्ण के कल्क (पाप) का निवारण मैत्रेय द्वारा कराया गया है।
१२. ततः कलो सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम् ।
बुद्धो नाम्नाजनसुतः कीकटेषुभविष्यति ॥ -भागवत् १/३/२४ देवद्विषां निगमवत्मनि निष्ठिताना पूमिमयेन दिहिताभिरदृश्यतूभिः। लोकाना ऽनता मतिर्विमोहमलिप्रलोभं वेषं विधाय बहु भाष्यत औपधर्म्यम् ॥
-वही, २/७/३७ भूमे रावतरणाय यदुष्वजन्मा जातः करिष्यति सुरैरपि दुष्कराणि । वारिमोहयति यज्ञ कृतोऽतदर्हान् शुद्रान् कलो क्षितिभुजोऽन्यहनिष्यदन्ते ॥
-वही, ११/४/२२ ३. मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ०४४६ ४. इन्डियन एंटीक्वेरी जि०४७ ( १९१८), पृ० १८-१९ उर्द्ध'त-मध्यकालीन
साहित्य में अवतारवाद, पृ० ४४६ ५. ब्रह्मणादिवर्णनामेककल्कत्वाभिप्रायेणमुकवज्र इति नामकरणान्मैव्यादिचतु
ब्रह्मविहार परिपूर्त्या सर्वकालं रागद्वषादिविशिद्धिनिवारणत्वेनेति नामाभिषेकः षष्ठः ।
-सेकोद्यशटीका, पृ० २१ उद्धृत वही, पृ० ४४८
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