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________________ अवतार को अवधारणा : २०३ नाम सूक्त के कर्ता के रूप में प्रयुक्त हुआ है।' कृष्ण आङ्गिरस का नाम "कौषीक ब्राह्मण' में भी प्राप्य है ।२ "छान्दोग्योपनिषद्” में देवकी के पुत्र एवं आंगिरस के शिष्य के रूप में कृष्ण का उल्लेख मिलता है। छान्दोग्योपनिषद् की यह कथा कालान्तर में विकसित कृष्णावतार की कथा का मूल बीज प्रतीत होतो है । क्योंकि अवतारी कृष्ण देवकी के पुत्र के रूप में ही विख्यात हुये हैं। "पाणिनिके अष्टाध्यायी" में भी कृष्ण का नाम आया है। ऋग्वेद में इन्द्र और कृष्ण नाम के असुर के संघर्ष का उल्लेख मिलता है।' डा. राधाकृष्णन् ने कृष्ण को उस दल का देवीकृत वीर पुरुष माना है। विष्णुपुराण में इन्द्र कृष्ण युद्ध और भागवत में कृष्ण द्वारा इन्द्र की पूजा का विरोध करने का उल्लेख है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ऋग्वेद के कृष्ण की पुराणों के कृष्ण से सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा की गई है। महाभारत में कृष्ण का अर्जुन से सम्बन्ध बताया गया है। ऋग्वेद में कृष्ण और अर्जुन तथा अथर्ववेद में राम और कृष्ण का उल्लेख पाया जाता है। __इस प्रकार वैदिक साहित्य के अनुशीलन से हमें कृष्ण नाम के व्यक्ति का अस्तित्व निःसंदिग्ध स्पष्ट होता है। उपयुक्त तथ्यों के अध्ययन से तीन प्रकार के कृष्ण का उल्लेख प्राप्त होता है : प्रथम आंगिरस कृष्ण, द्वितीय आर्यत्तर संस्कृति से सम्बद्ध कृष्णासुर, तृतीय महाभारत के कृष्ण । "छान्दोग्योपनिषद" के कृष्ण का सम्बन्ध गीता के कृष्ण से है क्योंकि छान्दोग्योपनिषद् के बहुत से उपदेश गीता के श्लोकों से साम्य रखते हैं। १. ऋग्वेद ८/८५-८७ २. कौषीतकि ब्राह्मण ३०/९ ३. छान्दोग्योपनिषद् ३/१७/६ ४. पाणिनि अष्टाध्यायी ५४/१/९९ ५. ऋग्वेद १/१३०/८; २/२०/७; ८/२५/१३ ६. इण्डियन फिलोसोफी : राधाकृष्णन् भाग १, पृ० ८७ ७. विष्णुपुराण ५/३०/९५ : भागवत १०/२५ ८. "अहश्च कृष्णमहरजुनं च विवर्तते रजसी वेद्याभिः ।" ऋग्वेद ६/९/१ "नवतं जातास्योषधे रामे कृष्णे असिक्नि च । अथर्ववेद द्धं० १/२३/१ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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