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२०२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
वतार कहा गया है।' पुनः छठे अध्याय में उनके पूर्णावतार का भान होता है । विष्णुपुराण में राम को अंशावतार कहा गया है।३।।
पालि साहित्य में बुद्ध को राम का अवतार माना गया है तथा जैनों ने भी राम को आठवें बलदेव के रूप में माना है। अवतार का हेतु
ऋग्वेद में विष्णु को जगत् का रक्षक एवं समस्त धर्मों का धारक कहा गया है। वाल्मीकि रामायण और अध्यात्म रामायण में देव शत्रुओं अर्थात् असुरों का वध विष्णु के अवतार का मुख्य प्रयोजन माना गया है।" गीता में भी अवतारवाद का मुख्य प्रयोजन धर्म रक्षा ही प्रतीत होता है अर्थात् जब धर्म का पतन तथा असुरों की वृद्धि होती है तो अवतार की आवश्यकता होती है । “गीता" कहती है कि जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब साधुओं का दुःख दूर करने एवं दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म को स्थापना के लिए भगवान् अवतार ग्रहण करते हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राम के अवतार का मुख्य प्रयोजन दुष्ट व्यक्तियों या असुरों का वध करना रहा है । ८. कृष्ण अवतार __ वैदिक साहित्य से लेकर भागवत तक विभिन्न ग्रन्थों में श्रीकृष्ण के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। ऋग्वेद में कृष्ण आंगिरस ऋषि का
१. "ततः पद्मपलासाक्षः कृत्वाऽऽत्मानं चतुर्विधम् । ___ पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम् ॥"
-वाल्मीकि रामायण १/१५/३१ २. वही ६/१२० ३. "तस्यापि भगवानष्यनाभो जगतः स्थित्यर्थमात्माशेन । रामलक्ष्मणभरतशत्रुघ्नरूपेण चतुर्द्धा पुत्रत्वमायासीत् ॥"
-विष्णुपुराण ४/४८७ ४. ऋग्वेद १/२२/१८ ५. "वधाय देवशत्रूणां नृणां लोके मनः कुरु ।
एवं स्तुतस्तु देवेशो विष्णुस्त्रिदशपुंगवः ॥ -वाल्मीकि रामायण १/१५/७६ मानुषेण मृतिस्तस्य मया कल्याण कल्पिता ।
अतस्त्वं मानुषो भूत्वा जहि देवरिपुप्रभी ।।-अध्यात्म रामायण १/२/२४ ६. गीता ४/७-८
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