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२०४ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
उपरोक्त तीनों कृष्णों के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि कालान्तर में पौराणिकों ने वैदिक कृष्ण का कृष्णावतार से एकीकरण का प्रयत्न किया है।
महाभारत के आदिपर्व में सामूहिक अवतारों के प्रकरण में श्रीकृष्ण को नारायण का अंशावतार कहा गया है ।' परमेश्वर के काले और सफेद दो केश कृष्ण और बलराम के रूप में अवतीर्ण हुए और वे परमेश्वर के अंश कहलाते हैं।२ भागवत में पृथ्वी का भार उतारने के लिए भगवान् के अपने श्वेत एवं काले बालों से बलराम और कृष्ण के रूप में अंशावतार लेने का प्रकरण मिलता है। भागवत के दशम स्कन्ध में भी बलराम और कृष्ण के रूप में अंशावतार का वर्णन मिलता है। यहाँ पर भी कृष्णावतार का मुख्य प्रयोजन असुर-संहार ही रहा है। ९. बुद्ध-अवतार
बुद्ध ऐतिहासिक महापुरुष हैं जिनकी ऐतिहासिकता सिद्ध की जा चुकी है। इतिहासकार इनका जन्म ई० पू० छठी शताब्दी में मानते हैं । जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीनों धर्मों का एक दूसरे पर अत्यधिक प्रभाव दिखाई देता है, जिसके कारण वैष्णव अवतारवाद का विकास कुछ लोग छठी शताब्दी के पूर्व के भागवत धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म से मानते हैं। श्री गोकुल डे बौद्धों में भक्ति के प्रादुर्भाव को भागवत् मानते हैं । वैष्णव धर्म में बुद्ध के गृहीत होने के पूर्व ही बुद्ध के अवतार, अवतारी और उपास्य तीनों रूपों की पूजा का उल्लेख मिलता है।
भगवान बुद्ध की पूजा उनके जीवनकाल में भी प्रचलित हो गई थी। बौद्ध धर्म में भागवत धर्म के प्रसिद्ध षड्गुण के सदृश छः पारमिताओंदान, शील, शान्ति, वीर्य, ध्यान एवं प्रज्ञा को साधना द्वारा ही बुद्ध ने
१. महाभारत : आदिपर्व ६७/१५१ २. “परं ज्योतिरचिन्त्यं यत्तदशः परमेश्वरः ।-विष्णुपुराण ५/१/६०,६४,७६ ३. भागवत २/७/२५ : ४. भागवत १०/१/२ ५. दी बोधिसत्व डाक्टरीन, पू० ३१-३२ : उद्ध त-म०सा० अवतारवाद, पृ०
४३७ ६. मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पृ० ४३७ ७. दो वैदिक एज, भाग १, पृ० ४५०
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