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________________ अवतार को अवधारणा : १९१ अवतारवाद की अवधारणा के अन्तर्गत सर्वप्रथम विष्णुपुराण में विष्णु-लक्ष्मी के युगल अवतारों की चर्चा हुई है', देव, तिर्यक् और मनुष्य में पुरुष रूप भगवान् हरि और स्त्री रूप लक्ष्मी हैं। जब-जब विष्णु ने अवतार धारण किया है लक्ष्मी भी उनके साथ अवतरित हुई हैं। हरि-पद्मा, परशुराम-पृथ्वी, राम-सीता और कृष्ण-रुक्मिणी आदि रूपों में भगवान् देव और लक्ष्मी देवी रूप में अवतरित हुए हैं। विष्णुपुराण में अनेक अंशावतारों के अतिरिक्त हरिवंश को परम्परा में कृष्ण एवं उनके सहयोगी गोप-गोपियों, देवता-देवियों के अंशावतरण का उल्लेख प्राप्त होता है।" इस प्रकार यहाँ अवतार का मुख्य प्रयोजन भूभार हरण है। ७. अवतार की अवधारणा का विकास यद्यपि वर्तमान में हम अवतार से तात्पर्य विष्णु के अवतार से ही लेते हैं किन्तु प्राचीन वैदिक साहित्य में सर्वप्रथम हमें इन्द्र तथा प्रजापति के अवतरित होने की सूचना प्राप्त होती है। कालान्तर में जब विष्णु महत्वपूर्ण देवता बन गये तो अवतरण की यह कल्पना उनके साथ जोड़ दी गई। वैदिक साहित्य में विष्णु इन्द्र के समकक्ष ही एक देवता रहे हैं, उन्हें इन्द्र का सखा कहा गया है और विभिन्न ऋचाओं में उनकी स्तुति भी की गई है, किन्तु धीरे-धीरे वैदिक इन्द्र का स्थान देवमंडल में क्षीण होता गया और उनके स्थान पर विष्णु प्रमुख बनते गये और परिणामस्वरूप विष्णु के अवतरण को ही मुख्य माना गया। यद्यपि आगे चलकर विष्णु के साथ-साथ अन्य देवताओं के अवतरण की कल्पना भी आई, किन्तु उन्हें विष्णु के अधीन ही माना गया । विष्णु के अवतार का प्रारम्भिक परिचय हमें महाभारत और पुराण साहित्य में प्राप्त होता है। सर्वप्रथम महाभारत में पहले विष्णु के छः अवतारों की चर्चा हुई है-वराह, १. विष्णुपुराण १/८/१७-३३ २. वही, १/८/३४-३५ ३. वही, १/९/१४२ ४. वही, १/९/१४३-१४४ ५. वही, ५/७/३८, ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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