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१९२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन नरसिंह, वामन, परशुराम, राम और कृष्ण' । पुनः महाभारत के अगले अध्याय में छः अवतारों के साथ चार अवतार-हंस, कूर्म, मत्स्य और कल्कि को मिलाकर दस की संख्या पूरी की गई है। यद्यपि अवतरण का सम्बन्ध विष्णु से जोड़ा गया है, किन्तु आश्चर्य यह है कि पौराणिक साहित्य विष्णुपुराण में विष्णु के दशावतारों का कोई उल्लेख नहीं मिलता है जबकि अन्य पुराणों में विष्णु के अवतारों का उल्लेख है, किन्तु अग्नि, वराह आदि परवर्ती पुराणों में मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि यह क्रम मिलता है। विभिन्न पुराणों में विष्णु के दस अवतारों की सूचियाँ कुछ अन्तर के साथ मिलती हैं, जिन्हें अग्रलिखित सारणी में दर्शाया गया है ।
तालिका सारिणी परिशिष्ट में देखें।
अब हम दस-अवतारों को विशद व्याख्या करेंगे-- (१) मत्स्य अवतार :
मत्स्य अवतार को प्रायः विष्णु का प्रथम अवतार माना गया है, परन्तु शतपथब्राह्मण में इनको प्रजापति का अवतार कहा गया है।' इनके अवतार के सम्बन्ध में एक कथानक इस प्रकार है कि मनु महाराज एक दिन प्रातःकाल आचमन कर रहे थे तो उनके हाथ में एक मछली आ गई और उसने कहा, "महाराज, मेरी रक्षा करें, महाजल प्लावन के समय मैं आपकी रक्षा करूंगी।" मनु ने उसे एक पात्र में रख दिया, ज्यों-ज्यों वह बढ़ती गई उसे क्रमशः बड़े पात्रों में रखते गये, अन्त में महा-समुद्र में डाल दिया। प्रलय होने के पूर्व मनु ने सभी सष्टि बीजों को एकत्र किया और अपनी नाव को उसी मत्स्य के सींग में बांध दिया जिससे प्रलयकाल में वे सुरक्षित रह सकें और प्रलय के अन्त में पुनः सृष्टि का विकास प्रारम्भ किया।
महाभारत के वनपर्व में पुनः मत्स्यावतार की एक अन्य कथा वर्णित है। वहाँ मत्स्य स्वयं को प्रजापति बताते हुए मनु को मनुष्य, असुर, देवता तथा सम्पूर्ण जगत की सृष्टि का आदेश देता है। इस प्रकार हम
१. महाभारत-शान्तिपर्व (३३९/७७-९८) २. वही, (३४०/३-४) ३. शतपथब्राह्मण १/८/१ ४. महाभारत-वनपर्व, पृ. ३०४-३०५
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