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________________ अवतार को अवधारणा : १८५ है।' ऐसा कहकर भगवान् शिव ने श्वास मार्ग से, विष्णु को वेदों का ज्ञान प्रदान किया ।' तदन्तर विष्णु ने तप किया। तप के प्रभाव से भगवान् विष्णु के अंग से जल की धारायें प्रकट हुईं। वह जल सम्पूर्ण शून्याकाश में व्याप्त हो गया । वह जल समग्र पापों का नाश करने वाला सिद्ध हुआ। नार अर्थात् जल में शयन करने के कारण वे 'नारायण' नाम से अभिहित हुए। ६. अवतार एवं उनका प्रयोजन (क) वाल्मीकिरामायण वाल्मीकिरामायण के अनुसार विष्णु देव-शत्रुओं के विनाश के लिए ही अवतरित हुए थे। राक्षसराज रावण के अत्याचारों से घबराकर देवता ब्रह्मा के पास जाते हैं। उसी समय शंख, चक्र, गदा और पद्म से विभूषित एवं पीताम्बर धारण करने वाले विष्णु उपस्थित होते हैं । सभी देवता मिलकर विष्णु से मनुष्य लोक में अवतार लेने का अनुरोध करते हैं। वाल्मीकिरामायण के अनुसार राम, विष्णु के अवतार नहीं है, किन्तु विष्णु के समान वीर्यवान हैं। यद्यपि विष्णु के समान पराक्रमी होने का एक अर्थ विष्णु का अवतार हो सकता है, क्योंकि अवतारवाद की अवधारणा में सदैव वीर्य (पौरुष) महत्वपूर्ण है। अपनी पराक्रमशीलता के कारण ही विष्णु वैदिककाल से ही विख्यात रहे हैं । वाल्मीकिरामायण में परशुराम के अवतारत्व-शक्ति से हीन होने के प्रसंग में स्पष्ट कहा गया है कि राम के धनुष चढ़ाने के पश्चात् परशुराम तेज और वीर्य से हीन होकर जड़ के समान हो गये ।" इससे स्पष्ट होता है कि तेज और वीर्य ही अवतार के प्रमुख लक्षण हैं। १. इत्युक्त्वा श्वासमार्गेण ददौ च निगमं ततः। -शिवपुराण २/१/६/४४ २. सुष्वाप परमप्रीतो बहुकाल विमाहितः । नारायणेति नामापि तस्यासीच्छ्र तिसम्मतम् ॥ -वही २/१/६/५३-५४ ३. वाल्मीकि रामायण १/१५/१४-२२ ४. "विष्णुना सदृशो वीर्ये ।"--वही १/१/१८ ५. "तेजोभिर्गत वीर्यत्वाज्जामदग्न्यो जडीकृतः ।"--वही १/७६/१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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