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________________ १८४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन मान बताया गया है ।" काशी क्षेत्र आनन्द को प्रदान करने वाला है इस कारण धनुषधारी शिव ने पहले इसका नाम “आनन्दवन" रखा था उसके बाद इसका नाम 'अविमुक्त' पड़ा । एक समय आनन्दवन में रमण करने वाले शिव एवं शक्ति के मन में यह विचार आया कि किसी दूसरे पुरुष को उत्पन्न करना चाहिए, ताकि इस सृष्टि के संचालन का महान् भार उस पर छोड़कर हम दोनों काशी में इच्छानुसार विचरण करें और निर्वाण धारण करें । अतः वही पुरुष हमारे अनुग्रह से सृष्टि उत्पन्न करे, उसका पालन करे और अन्त में उसका संहार करे । इस प्रकार निश्चय करके सर्वव्यापी परमेश्वर शिव ने अपने वामभाग के दसवें अंग पर अमृत मला तो वहाँ से तीनों लोकों में अति सुन्दर पुरुष प्रकट हो गया । इस प्रकार उस दिव्य, सर्वगुणसम्पन्न, पीताम्बरधारी पुरुष ने अपने नाम और कार्य के विषय में भगवान् शंकर से जिज्ञासा प्रकट की, तो परमात्म शिव अर्थात् भगवान् शंकर ने उत्तर दिया- 'व्यापक होने के कारण तुम्हारा "विष्णु" नाम विख्यात होगा, इसके अतिरिक्त और भी विभिन्न नाम होंगे। तुम सुस्थिर होकर तप करो क्योंकि वही समस्त कार्यों का साधक ५ १. युगपच्च तथा शक्त्यासाकं कालस्वरूपिणा । शिवलोकाभिघं क्षेत्र निर्मितं तेन ब्रह्मणा ॥ सदेव काशिकेत्येतत्प्रीच्यते क्षेत्रमुत्तमम् । परं निर्वाण संख्यानं सर्वोपरि विराजितम् ।। - शिवपुराण २ / २ / ६ / २७ - २८ २. अथानन्दवने तस्मिञ्छवयो रममाणयो । इच्छेत्यभूत् सुरर्षेहि सृज्यः कोऽप्यूपरः किल ॥ यस्मिन्नयस्य महाभारमावां स्वस्वैरचारिणी । निर्वाणधारणं कुर्वः केवलं काशिशायिनो ।। ३. स एव सर्व कुरुतां स एव परिपातु च । स एव संवृणोत्वन्ते मदनुग्रहता सदा ॥ ४. संप्रधार्येति स विभुस्तया शक्त्या परमेश्वरः । सव्ये व्यापारयांचक्रे दशमेंऽशे सुधासवम् ॥ पुमानाविरासी देकस्त्रलोक्यसुन्दरः ।। विष्विति व्यापकत्वात्ते नाम ख्यातं भविष्यति । ततः Jain Education International For Private & Personal Use Only -- वही २/१/६/३३ वही २/१/६/३४ वही २/२/६/३७ -- वही २/१/६/३८ वही २/२/६/४३ www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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