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________________ अवतार की अवधारणा : १८१ ज्यक' और पंचविशब्राह्मण में एक विचित्र कथानक है कि एक बार विष्णु अपने धनुष पर सिर रखकर निद्रा में निमग्न थे, दीमकों ने धनुष की डोरी काट दी जिसके कारण धनुष वेग से उछला और विष्णु का सिर कटकर आकाश में जाकर स्थित हा गया। परवर्ती साहित्य में विष्णु के वाहन गरुड़ को गरुत्मत तथा सुपर्ण भी कहा गया है। ये दोनों विशेषण सूर्य के लिए प्रयुक्त किये गये हैं और उसे एक शीघ्रगामी पक्षी के रूप में चित्रित भी किया गया है। महाभारत के अनुशासनपर्व में विष्णु के जिन सहस्रनामों का उल्लेख है उनमें सहस्रांशु-हजारों किरणों वाले सूर्यरूप, गर्भस्तिनेमि-किरणों के बीच में सूर्यरूप में स्थित; विहायसगति-आकाश में गमन करने वाले रवि-समस्त रसों का शोषण करने वाले सूर्य; विरोचन-विविध प्रकार के प्रकाश फैलाने वाले; सूर्य-शोभा को प्रकट करने वाले; सविता-समस्त जगत् को प्रसव यानी उत्पन्न करने वाले आदि विशेषण निश्चित रूप से विष्णु का सूर्य से सम्बन्ध दर्शाते हैं । विष्णुपुराण में कहा गया है कि विष्णु ज्योतिपिण्डों के अधिपति हैं। सूर्य ही विष्णु और उनकी आभा लक्ष्मी हैं। ___ ब्रह्मपुराण सशक्त शब्दों में कहता है कि सूर्य ही विष्णु हैं और विष्णु ही सूर्य हैं। एक ही तत्व आधिभौतिक दृष्टि से सूर्य और आदिदैविक दृष्टि से विष्णु हैं। १. तैत्तिरीयआरण्यक ५/१/१ २. पंचविशब्राह्मण ७/५/६-१६ ३. उक्षा समुद्रो अरुषः सुपर्ण पूर्वस्य योनि पितुरा विवेश । मध्ये दिवो निहितः पृश्नि रश्मा वियक्रमे रजसस्पात्यन्तौ ।। -ऋग्वेद १/४७/३ ४. महाभारत-अनुशासन पर्व, विष्णुसहस्रनाम, पृ० १४८७-१५०० ५. साद्रिद्वीपसमुद्राश्च सज्योतिर्लोकसंग्रहः । -विष्णुपुराण १/२/५८ ६. यश्च सूर्यः स वै विष्णुः यश्चविष्णुः स भास्करः । -ब्रह्मपुराण १५८/२४ ७. पद्मपुराण-सृष्टि खण्ड २०/१७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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