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१८० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन का 'मूलरूप' विश्टनु (विस्टनु) रहा होगा, जिसका संस्कृतीकरण 'विष्णु' के रूप में कर लिया गया।'
विष्णु की आदित्यगण में गणना किये जाने से इनका मूलरूप में सूर्य से किसी न किसी प्रकार से सम्बन्ध अवश्य था ।
प्रकृति की प्रत्येक वस्तु प्रकाश से आवृत दिखाई पड़ती है । सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्व में भी सूर्य की सर्वत्रगामिनी किरणें प्रविष्ट रहती हैं। इस कारण ही वैदिक महर्षियों को दृष्टि इस ओर गई। ४. विष्णु और सूर्य
विष्णु का सूर्य से सम्बन्ध अनेक वैदिक तथा अवैदिक दृष्टान्तों से स्पष्ट होता है। जिस प्रकार सूर्य देव ने अपनी शक्ति से समस्त पार्थिव लोक को नापा, उसी प्रकार विष्णु ने पृथ्वीमंडल को नाप लिया था। विष्णु की यही विशेषता निश्चित रूप से सूर्य के पृथ्वीमंडल के चारों ओर परिभ्रमण को संकेतित करती है । विष्णु का ताप से विशेष सम्बन्ध बताया गया है।
___ "विष्णुर्यनक्तु बहुधा तपांसि" ।' वर्ष, मास और ऋतुओं का नियामक सूर्य ही है, इसी तथ्य को ध्यान में रखकर ऋग्वेद में कहा गया है कि विष्णु अपने ९० अश्वों को एक चक्र की भांति घुमाते हैं। प्राचीन वैदिक साहित्य में प्रायः ४ ऋतुओं का उल्लेख है, प्रत्येक ऋतु के ३ मास के ९० दिनों को ये ९० अश्व प्रदर्शित करते हैं। श्रीमदभागवत् में वर्ष का कालचक्र के रूप में अतीव सुन्दर वर्णन उपलब्ध है।
विष्णु से सूर्य की उत्पत्ति के बारे में शतपथब्राह्मण, तैत्तिरीय आर
१. "एता भगवतो विष्णोरादित्यस्य विभूतयः"
-भागवतपुराण, १२/११/४५ २. अथर्ववेद ५/२६/७ ३. चतुभिः साकं नवति च नामभिः चक्रं न वृतं व्यतीरंवीवियत् ।
बृहच्छरीरो विमिमान त्रक्वभियुवाकुमारः प्रत्येत्याहवम् ।। ४. श्रीमद्भागवत् ५/२१/१३ ५. शतपथब्राह्मण १४/१/१ -
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