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अवतार को अवधारणा : १७९
पृथ्वी को चपटा कर फैलाने वाले के सन्दर्भ में किया है (Wer die Flache auseinander gebeitet ) 19
थॉमस ब्लाक तथा जोहान्सन ने विष्णु शब्द में " जिष्णु" (विजयी) शब्द की भाँति "स्तु" प्रत्यय को उपस्थिति मानी है, "जि" की भाँति मूल " वि" कोई धातु नहीं है । इन विद्वानों ने 'वि' शब्द के 'पक्षी' अर्थ के अनुसार यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि विष्णु शब्द मूलतः 'श्रेष्ठ पक्षी' का अर्थ रखता है और इस रूप में सूर्य को दर्शाता होगा । ऋग्वेद में प्रातः सूर्यं को सुपर्ण या गरुत्मत् कहा गया है। 2 जोहान्सन ने इसकी ग्रीक शब्द 'औइस्नस " ( Oisnos ) अर्थात् " बड़ा पक्षी" से तुलना की है ।
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हॉपकिन्स ने विष्णु के गति से विशेष सम्बन्ध को ध्यान में रखते कवि अथवा वी से इसकी व्युत्पत्ति मानने का आग्रह किया है । " मैकडानल ने कहा है कि गमन करने या ' त्रेधा विचक्रमण' के कारण ऋग्वेद में विष्णु का विशेष महत्व है अतः विष्णु शब्द अवश्य ही गत्यक धातु से सम्बद्ध रहा होगा । इस सम्बन्ध में उसने क्रयादिगण की 'विष' (विप्रयोगे धातुपाठ १५२७) धातु का सुझाव दिया है। ऋग्वेद में यह धातु पर्याप्त स्थानों पर प्रयुक्त हुई है और पीटर्सबर्ग के कोश के अनुसार इसका मूल अर्थ क्रियाशील या गतिमान होना है । ४
कुछ भाषा वैज्ञानिकों का यह मत है कि विष्णु शब्द मूलतः आर्य भाषा का न होकर द्रविड़ भाषा से लिया गया है, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध देवता का नाम विठोवा या विट्ठल है जो ध्वनि परिवर्तनों के बाद आर्य भाषा संस्कृत में अपना लिया गया, क्योंकि विष्णु संस्कृत शब्द-संपदा का शब्द नहीं है । एफ. डब्ल्यू ० थामस का मत है कि जिस प्रकार कृष्ण शब्द का तमिल रूप आज ( क्रुस्टना या क्रिस्टना) है । उसी प्रकार विष्णु
१. डेउर आरिशे वेल्टक्योनिख् उन्ट हाइलष्ट, पृ० ३०६ २. ऋग्वेद १/४७/३
३. जर्नल आफ अमेरिकन ओरियन्टल सोसाइटी, भाग ६, पृ० २६४ ( वी गतिव्याप्ति प्रजनकान्त्यसनखादनेषु, धातुपाठ - १०४८ ) ४. ' आक्तद्यु कांग्रे ऐतरनासियोनाल देज् ओरियन्तलिस्त
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( अष्टादश अधिवेशन १९३१), पृ० १५४ 'आरवी व ओरियन्टालनी, भाग ४ (१९३२), १० २३१
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