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________________ १८२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन - मत्स्यपुराण के अनुसार भगवान् नारायण ही सत्वगुण से सूर्य का रूप धारण कर जल का शोषण करते हैं। श्रीमद्भागवत् में सूर्य को विष्णु के प्रत्यक्ष रूप में माना गया है। लोक कल्याण के लिए सृष्टि को धारण करनेवाले आदि-पुरुष नारायण का साक्षात स्वरूप ऋतुओं का विभाजन करने वाले सूर्य को बताया गया है, साथ ही यह भी कहा गया है कि वेद और विद्वान् लोग जिनकी गति को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं वे साक्षात् आदि पुरुष भगवान् नारायण ही लोकों के कल्याण और कर्मों की शुद्धि के लिए अपने वेदमय विग्रह काल को बारह मासों में विभक्त कर वसन्तादि ६ ऋतुओं में उनके गुणों का विधान करते हैं। वेदोक्त यज्ञ-यागादि क्रियाओं के आधार पर सूर्य और विष्णु में कोई अन्तर नहीं है परन्तु ऋषियों ने वैदिक क्रियाओं के अनुसार सूर्य का विभिन्न रूपों में वर्णन किया है। इस प्रकार विष्णु की कल्पना सर्य के प्रकाश रूप से न करके तीव्र गति से विचरते सूर्य बिम्ब से की गई। आकाश में पूर्व से पश्चिम तीव्र गति से जाने के कारण ही विष्णु को उरूगाय तथा उरूक्रम नाम से विभूषित किया गया है । तीव्र गति के कारण एष, एवया तथा एवयावान् आदि उनके विशेषण कहे गये हैं। - दैत्यों के विनाश के लिए ही उग्र तपस्या कर विष्णु ने शिव से सुदर्शन नामक चक्र को प्राप्त किया। विष्णु को उनकी शैव भक्ति के कारण शैवराट को संज्ञा से भी अलंकृत किया गया है। १. भूत्वा नारायणो योगी सत्वमूर्तिविभावसुः । ___गभस्तिभिः प्रदीप्ताभिः संशोषयति सागरान् ॥ -मत्स्यपुराण १६६/१ २. प्रत्नस्य विष्णो रूपं यत्सत्यस्यतस्य ब्रह्मणः। अमृतस्य च मृत्योश्च सूर्यमात्मानमीमहीति ॥ -भागवत् ५/२०/५ ३. स एष भगवानादिपुरुष एवं साक्षान्नारायणो लोकानां स्वस्त्य आत्मानं त्रयी- मयं कर्मविशुद्धिनिमित्तं कविभिरपि च वेदेन विजिज्ञास्यमानो द्वादशवा विभज्य षट्सु वसन्ताविष्वृतुषु यथोपजोषमृतुगुणान् विदधाति ।। -भागवत् ५/२२३ ४. एक एव हि लोकानां सूर्य आत्माऽऽदिकृतरिः। सर्ववेदक्रियामूलमृषिभिर्बहुधोदितः ॥ -वही, १२/११/३० ५. वैदिक माइथोलोजी, पृ० ३९ ६. वही, पृ० ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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