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________________ १७६ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन शब्दों का ही पर्यायवाची है । फिर भी सामान्यतया विष्णु या ईश्वर के जन्म लेने को ही अवतार कहा गया है । अवतार की अवधारणा में यह सिद्धान्त निहित है कि ईश्वर भूतल पर शरीरधारी बनकर जन्म लेता है । बौद्ध और जैन धर्मों के अनोश्वरवादी होने के कारण उनमें अवतार की अवधारणा को स्पष्टरूप से स्वीकार नहीं किया गया है फिर भी कुछ ऐसे शब्द के प्रयोग मिलते हैं जो इस अवधारणा से सम्बन्धित प्रतीत होते हैं । महायानी बौद्ध साहित्य के विख्यात ग्रन्थ "सद्धर्मपुण्डरीक" में क्रमशः अवतीयं, अवतारिता, जातः, उत्पन्न, प्रादुर्भाव शब्द प्रयुक्त हुए हैं । " इनमें प्रादुर्भाव शब्द सर्वाधिक प्रचलित है । " तथागत - गुह्यक' में निर्माण, निष्क्रान्त, कायधारण तथा अवधारण जेसे शब्द मिलते हैं ।" "मंजूश्रीमूलकल्प” में अवतारयेत्, अवतारार्थ के अतिरिक्त समागत और आविष्ट शब्द प्रयुक्त हुये हैं ।" "बौद्धगानओदोहा " में अवतरित, निर्माणकाय, जाते आदि शब्द प्रयुक्त हुए हैं। बौद्ध धर्म का निर्माणकाय शब्द अवतार की अवधारणा के निकट है। सिद्ध-सरहपाद के दोहाकोश में "विशिष्ट निर्माणकायो च जायते" जैसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं । इसी ग्रन्थ में एक जगह “णिअ-पहुधर- वेस" (निज- प्रभुधर - वेश) का व्यवहार हुआ है ।" दोहाकोश में "बोधिसत्व अकम्पित अवतरे", "कायधारण" और " सगुणपहसे” जैसे अवतार की अवधारणा को सूचित करने वाले शब्द मिलते हैं । यद्यपि ये शब्द बुद्ध के अवतरण या शरीर धारण से सम्बन्धित हैं फिर भी इनका वह अर्थ नहीं है जो हिन्दू परम्परा में ईश्वर के अवतरण का है । १. सद्धर्मपुण्डरीक, पृ० १३६, ३०१, १२८, १२५, २४०; द्रष्टव्य मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, पीठिका, पृ० ७ ( डॉ० कपिल देव पाण्डेय ) २. तथागतगुह्यक, पृ० २,५९, १०८ : द्रष्टव्य- - वही ३. मंजूश्रीमूलकल्प, पृ० ५०२, २०२, २१६, २३६, २३७ : द्रष्टव्य -- ४. बौद्धगानओदोहा, पृ० ११२, ९१, ९३ : द्रष्टव्य - वही ५. दोहाकोश, पृ० ९४, ९६, १५९: वाद पीठिका, पृ० ८ ६. दोहाकोश (सिद्धसरहपात्र), पृ०० २३७, ०९९, ३३ : द्रष्टव्य- वही Jain Education International द्रष्टव्य- मध्यकालीन साहित्य में अवतार - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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