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अवतार की अवधारणा : १७५
अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । " यजुर्वेद के अंग्रेजी टीकाकार ग्रिफिथ ने अवतर का अर्थं ‘descend' अर्थात् उतरना किया है ।" तैत्तिरीय ब्राह्मण' में 'अवतारी' शब्द का प्रयोग ऋग्वेद के समान हो रक्षा करने के अर्थ में ही हुआ है, उसमें मन्त्र की समानता के कारण अर्थ वैषम्य की सम्भावना नहीं है । इसी प्रकार शतपथब्राह्मण" तथा मैत्रायणी संहिता में प्रयुक्त अवतर शब्द यजुर्वेद में प्रयुक्त "अवत्तर" शब्द के समान ही अर्थ रखते हैं । पाणिनि ने "अवतार" शब्द का प्रयोग नीचे उतरने के अर्थ में किया है—
“अवे तृस्त्रोर्घत्र, अवतारः कूपादिः, अवस्तारो जवनिका । "
गीता में "अवतार" की अपेक्षा " आत्म सृजन और "दिव्य जन्म " का प्रयोग हुआ है ।" वाल्मीकि रामायण, महाभारत और विष्णुपुराण के अवतार सम्बन्धी उल्लेख में विष्णु के शरीर धारण करने या भूतल पर अवतीर्ण होने से अधिक सम्बन्धित है ।" श्रीमद्भागवत में "अवतार" शब्द के स्थान पर " सृजन", "सृष्टि" और "जायमान" शब्द व्यवहृत हुए हैं । १°
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इस प्रकार अवतार शब्द सृजन, जायमान, प्रभृति, उत्पत्ति सूचक
१. " उपज्मन्तुप वेतसेऽवतर नदीष्वा । अग्रे पित्तमपामसि मण्डूकिता मिरागहि सेमं नो यज्ञं पावक वर्णं भूशिवं कृषि || --यजुर्वेद १५ / ६
२. “Descend upon the earth, the road, rivers, Thou art the gall, O Agni of the waters.”
३. तैत्तिरीय ब्राह्मण २/८/३/३
४. ऋग्वेद ६ / ३ / २५ / २
५. शतपथब्राह्मण ९/१/२/२७ ६. मैत्रायणी संहिता २/१०/१ ७. यजुर्वेद १७/६
८. गीता, ४/६ - ९
९. वाल्मीकि रामायण १ / १६ / ३; महाभारत १ / ६४ / ५४; विष्णुपुराण ५ / २ / ६० - ६५
१०. " यस्यांशांशेन सृज्यन्ते देवतिर्यङ् नरादयः ॥ "
"निशीथे तमउद्भूते जायमाने जनार्दने ।"
अष्टाध्यायी ३.३.१२०
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- भागवत १/३/५
- भागवत १०/३/८
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