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बुद्धत्व को अवधारणा : १६५
स्वाभाविक हो है कि अगर बौद्धों में भागवतों को "भक्ति" को अवधारणा को अपनाया तो उनके देवताओं को क्यों नहीं अपनाया ? बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की कल्पना उनकी अपनी कल्पना है। फिर भी इतना तो स्पष्ट होता ही है कि बोधिसत्व की अवधारणा एक प्रकार से अवतारवाद का बौद्धधर्मीय संस्करण ही है । इस संदर्भ में भो बौद्ध धर्म पर भागवत धर्म का प्रभाव देखा जा सकता है।' __श्री गोकुल दास डे ने अपनी पुस्तक 'सिग्निफिकेंस एण्ड इम्पोर्टेन्स आफ जातकाज' के अन्तिम अध्याय में बौद्धों और भागवतों के सम्बन्ध को जातकों के वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर सिद्ध करने का प्रयास किया है। वे कहते हैं-"पूर्ववर्ती बौद्ध धर्म जातकों के आधार पर भागवत धर्म से प्रभावित रहा है, क्यों कि भागवत धर्म का मूल आधार भक्तितत्त्व जातकों एवं महायान ग्रन्थों में सर्वत्र व्याप्त है। गृहस्थों के लिए स्वर्ग ( सग्ग ) और संन्यासियों के लिए मोक्ष भो दोनों में सामान्य रूप से मान्य है।"२ अतः यह कहा जा सकता है कि बौद्ध धर्म पर भागवत धर्म का प्रभाव पड़ा होगा। १७. बुद्ध और लोक कल्याण
निवृत्ति प्रधान बौद्ध-दर्शन में लोक कल्याण की उत्कृष्ट भावना के दर्शन होते हैं, जिसका चरमोत्कर्ष 'बोधिचर्यावतार' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ में परिलक्षित होता है । स्वयं भगवान् बुद्ध ने बोधि प्राप्त करने के बाद समाधि सुख का परित्याग कर लोकहितार्थ एवं लोक कल्याण के लिए कार्य करना हो श्रेयस्कर समझा और उन्होंने अपने भिक्षुओं को लोकहित का ही सन्देश दिया। वे कहते हैं-"चरथ भिक्खवे चारिकं बहुजनहिताय बहुजन-सुखाय लोकानुकम्पाय अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्सान" अर्थात् हे भिक्षुओं, 'बहुजनों के हित के लिए, बहुजनों के सुख के लिए, लोक अनुकम्पा के लिए, देव और मनुष्यों के सुख और हित के लिए परिचारण करते रहो।"३
१. दी बोधिसत्व डाक्ट्रिन, पृ० ३२ : उद्धृत-मध्यकालीन साहित्य में अवतार
वाद, पृ० ५ २. सिग्निफिकेस ऐण्ड इम्पोर्टेन्स आफ जातकाज, पृ० १५६-१५९ : उद्धृत वही,
पृ०६ ३. महावग्ग १/१०/३२, पृ० २३
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