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________________ १६० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन भगवान् पुष्य ने भी तीन धर्मसम्मेलनों में धर्मोपदेश दिया। उन तीन धर्मसम्मेलनों में एकत्र होने वाले भिक्षुओं को संख्या क्रमशः ६० लाख, ५० लाख तथा ३२ लाख थी। उस समय के बोधिसत्व क्षत्रिय राजा विजितावी ने विशाल राज्य का परित्याग कर, त्रिपिटकों का अध्ययन किया एवं शील पारमिताओं को पूरा कर श्रमण धर्म में प्रवजित हो गए। तत्पश्चात् शास्ता ने कहा कि आप भविष्य में बुद्ध होंगे। __ भगवान् के दो प्रधान शिष्य सुरक्षित एवं धर्मसेन थे और परिचारक सभिय थे। इनकी प्रधान शिष्याएँ चाला एवं उपचाला थीं। इनको आमलक (आँवला) वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था। इनके शरीर की ऊँचाई ५८ हाथ तथा उनकी आयु ९० हजार वर्ष थी। (१९) भगवान् विपश्यी भगवान् पुष्य के पश्चात् मनुष्यों में श्रेष्ठ, चक्षुमान, लोकनायक, विपश्यी नामक बुद्ध हुए। भगवान् विपश्यी का जन्म बन्धुमती नगर के राजा बन्धुमान के यहाँ हुआ था, इनकी माता का नाम बन्धुमती था। भगवान् विपश्यी ने भी तीन धर्मसम्मेलनों में धर्मोपदेश दिया। उन तीन धर्मसम्मेलनों में सम्मिलित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः ६८ लाख, १ लाख तथा ८० हजार थी। उस समय के बोधिसत्व महाप्रतापी राजा नाग ने सात रत्नों से सुसज्जित सिंहासन शास्ता को भेंट किया। शास्ता ने कहा कि आप इस कल्प से ९१ कल्प के बाद बुद्ध होंगे। भगवान् के दो प्रधान शिष्य खण्ड तथा तिष्य थे और पारिचारक अशोक थे। इनकी प्रधान शिष्याएं चन्द्रा तथा चन्द्रमित्रा थीं। इनको पाटलि वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था। इनके ८० हाथ ऊंचाई वाले शरीर की आभा सदैव सात योजन तक व्याप्त रहती थी और उनकी आयु ८० हजार वर्ष थी। १. "फुस्सस्स अपरेन, सम्बुद्धो द्विपदुत्तमो । विपस्सी नाम नानेन, लोके उप्पज्जि चक्खुमा ॥" -वही, पृ. ३४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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