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बुद्धत्व की अवधारणा : १५९
इन कर्णिकार वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था । इनके शरीर की ऊँचाई ६० हाथ तथा इनकी आयु १ लाख वर्ष थी ।
(१७) भगवान् तिष्य
भगवान् सिद्धत्थ के बाद अनन्त शोल-सम्पन्न, अमित यश वाले, अनुपम, अद्वितोय तिष्य नामक बुद्ध हुए । भगवान् तिष्य का जन्म क्षेम नगर के जनसन्ध नामक क्षत्रिय के यहाँ हुआ था इनकी माता का नाम पद्मा था ।
उस समय के बोधिसत्व महाऐश्वर्य सम्पन्न सुजात नामक क्षत्रिय ने मन्दार, पद्म तथा पारिजात पुष्पों से चारों परिषदों के बीच शास्ता की पूजा की तथा आकाश में फूलों की चाँदनी लगवा दी । तदुपरान्त शास्ता ने कहा कि आप इस कल्प से ९२ कल्प बीतने पर 'बुद्ध' होंगे ।
भगवान् तिष्य ने भी तीन धर्म सम्मेलनों में भिक्षुओं को धर्मोपदेश दिया । उन सम्मेलनों में एकत्रित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः १ अरब ९० करोड़ तथा ८० करोड़ थी ।
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भगवान् के दो प्रधान शिष्य ब्रह्मदेव और उदय थे और परिचारक सम्भव थे । इनको प्रधान शिष्यायें फुस्स और सुदत्ता थीं। इनको असम वृक्ष के नीचे बोधिलाभ प्राप्त हुआ था । इनके शरीर की ऊँचाई ६० हाथ एवं इनकी आयु १ लाख वर्ष थी ।
(१८) भगवान् पुष्य
भगवान् तिष्य के पश्चात् अनुपम, अलौकिक, अद्वितीय लोकनायक पुष्य नामक बुद्ध हुए ।
भगवान् पुष्य का जन्म काशी नगरी के राजा जयसेन के यहाँ हुआ था, इनकी माता का नाम सिरिमा था ।
१. " सिद्धत्थस्स अपरेन, असमो अप्पटिपुग्गलो । अनन्ततेजो अमितयसो, तिस्सो लोकग्गनायको ।। "
- बुद्धवंस अट्ठकथा; पृ० ३३४
२. “ तत्थेव मण्डकप्पम्हि, आहु सत्था अनुत्तरो । अनुपमो असमसमो, फुस्सो लोकग्गनायको ॥ "
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बुद्धवंस अट्ठकथा, पृ० ३४०
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