________________
-१५८ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
हुए, वे अन्धकार को विनष्ट कर देवताओं सहित लोक में प्रकाशित हुए । ' भगवान् धर्मदर्शी का जन्म शरण नगर के राजा शरण के यहाँ हुआ था, इनकी माता का नाम सुनन्दा था । भगवान् धर्मदर्शी ने तीन धर्म सम्मेलनों में भिक्षुओं को धर्मोपदेश दिया । इन तीन सम्मेलनों में सम्मिलित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः एक अरब ७० करोड़, ८० करोड़ थी ।
1
उस समय के बोधिसत्व देवताओं के राजा शक्र ने गन्ध, पुष्प एवं वाद्यों से शास्ता धर्मदर्शी की पूजा अर्चना की । तदुपरान्त शास्ता ने कहा कि आप भविष्य में 'बुद्ध' होंगे ।
भगवान् के दो प्रधान शिष्य पद्म तथा स्पर्शदेव थे तथा परिचारक सुनेत्र थे । इनकी प्रधान शिष्यायें क्षेमा तथा सर्वनामा थीं। इनको रक्रकुरबक वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था । इनके शरीर की ऊचाई ८० हाथ और इनकी आयु एक लाख वर्ष थी ।
(१६) भगवान् सिद्धत्थ
जिस प्रकार सूर्य के निकलने से अन्धकार नष्ट हो जाता है उसी -प्रकार भगवान् धर्मदर्शी के बाद संसार में दुःखरूपी अन्धकार को दूर करने के लिए सिद्धत्थ नामक बुद्ध उत्पन्न हुए । भगवान् सिद्धत्थ का जन्म वैभार नगर के राजा जयसेन के यहाँ हुआ था, इनकी माता का नाम सुस्पर्शा था । भगवान् सिद्धत्थ ने भी तीन धर्म सम्मेलनों में भिक्षुओं को धर्मोपदेश दिया । उन सम्मेलनों में एकत्रित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः १० अरब, ९ खरब तथा ८ खरब थी ।
उस समय के बोधिसत्व मंगल नामक तपस्वी ने तथागत सिद्धत्थ को जम्बुफल प्रदान किये । तत्कचात् तथागत ने कहा कि आप ९४ कल्प बीतने के बाद बुद्ध होंगे ।
भगवान् के संघ में दो प्रधान शिष्य सम्बहुल तथा सुमित्र थे तथा परिचारक रेवत थे । इनकी प्रधान शिष्यायें सीवली तथा सुरामा थीं ।
१. " तत्थेव मण्डकप्पम्हि, धम्मदस्सी महायसो । तमन्धकारं विघमित्वा, अतिरोचति सदेवके ॥ "
-- बुद्धवंस अट्ठकथा, पृ० ३२२
" धम्मदस्सिस्स अपरेन, सिद्धत्यो लोक नायको । निहनित्वा तमं सब्बं सुरियो वब्भुग्गतो यथा"
Jain Education International
- बुद्धवंस अट्ठकथा, पृ० ३२७
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org