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बुद्धत्व को अवधारणा : १५५.
भगवान् पद्मोत्तर का जन्म हंसवती नगर के क्षत्रिय राजा आनन्द के यहाँ हुआ था और इनकी माता का नाम सुजाता था ।
भगवान् पद्मोत्तर ने तीन धर्म सम्मेलनों में धर्मोपदेश दिया, जिनमें सम्मिलित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः १० खरब ९ खरब तथा ८ खरब थी । तत्कालीन बोधिसत्व जटिल ने शास्ता पद्मोत्तर एवं उनके संघ को तीन चीवर ( अन्तरवासक, उत्तरासंग ओर संघाटी ) प्रदान किये । तदुपरान्त शास्ता ने उनसे कहा कि आप भविष्य में बुद्ध होंगे ।
भगवान् पद्मोत्तर के दो प्रधान शिष्य देवल एवं सुजात थे और परिचारक सुमन थे । इनकी दो प्रधान शिष्याएँ अमिता और असमा थीं । इनके शरीर की ऊँचाई ८८ हाथ थी और इनकी आयु १ लाख वर्ष थी । भगवान् के शरीर से विलक्षण आभा प्रस्फुटित होकर चारों दिशाओं को १२ योजन तक प्रकाशित करती थी ।
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(११) भगवान् समेध
भगवान् पद्मोत्तर के बाद उग्र-तेजस्वी, नर श्रेष्ठ मुनि सुमेध नामक बुद्ध हुए । '
भगवान् सुमेध का जन्म सुदर्शन नगर में हुआ था । इनके पिता का नाम सुदत्त एवं माता का नाम सुदर्शना था ।
भगवान् सुमेध ने अपने तीन शिष्य सम्मेलनों में धर्मोपदेश दिया था । इनके शिष्य सम्मेलनों में एकत्रित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः १ अरब, ९० करोड़ तथा ८० करोड़ थी । उस समय के बोधिसत्व उत्तर ने शास्ता सुमेध एवं संघ को भोजन प्रदान किया था । तदुपरान्त शास्ता ने कहा कि आप भविष्य में बुद्ध होंगे ।
भगवान् के दो प्रधान शिष्य शरण एवं सर्वकाम थे और उपचारक सागर थे । इनकी प्रधान शिष्याएँ रामा एवं सुरामा थीं। इनको कदम्ब वृक्ष के नीचे बोधिलाभ हुआ था । इनके शरीर की ऊँचाई ८८ हाथ और इनको आयु ९० हजार वर्ष थी ।
१. " पदुमुत्तरस्स अपरेन, सुमेधो नाम नायको । दुरासदो उग्गतेजा, सब्बलो कुतमो
मुनि ॥ "
- बुद्धवंस अट्ठकथा, पृ० २९२
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