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________________ को अवधारणा : १५३ (७) भगवान् अनोमदर्शी बौद्ध परम्परा में भगवान् शोभित के बाद सातवें बुद्ध भगवान् अनोमदर्शी माने गए हैं। ये अपार यशस्वी, तेजस्वी तथा दुर्जेय थे।' इनका जन्म चन्द्रवतो नगर के राजा यशवान के यहाँ हुआ था, इनकी माता का नाम यशोधरा था। इनके तीन धर्म सम्मेलनों में उपस्थित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः ८ लाख, ७ लाख और ६ लाख थी। उस समय के यक्षों के स्वामी ने भगवान् अनोमदर्शी एवं उनके समस्त भिक्षुओं को भोजन प्रदान किया था तब शास्ता ने यक्षों के स्वामी को कहा कि आप भी भविष्य में बुद्ध होंगे। - भगवान् अनोमदर्शी के दो प्रधान शिष्य निसभ एवं अनोभ तथा परिचारक वरुण थे। इनकी दो प्रधान शिष्याएँ सुन्दरी एवं सुमना थीं। इन्होंने अर्जुन वृक्ष के नीचे बोधि लाभ प्राप्त किया था। इनके शरीर की ऊँचाई ५८ हाथ और आयु १ लाख वर्ष मानी गई है। (८) भगवान् पद्म - भगवान् अनोमदर्शी के पश्चात् नरश्रेष्ठ पद्म नामक बुद्ध हुए, जो अनुपम एवं अद्वितीय थे। इनके पिता का नाम असम एवं माता का नाम असमा और जन्म स्थान चम्पक नगर माना गया है। भगवान् पद्म ने तोन धर्म सम्मेलनों में धर्मोपदेश दिया, जिनमें सम्मिलित होने वाले भिक्षुओं की संख्या क्रमशः १० खरब, ३ लाख तथा २ लाख थी। भगवान् के तीसरे धर्म सम्मेलन को देखकर एक सिंह ने जीवन के प्रति मोह का त्याग कर दिया। उसने अपनो क्षधा की तप्ति के लिए शिकार का त्याग कर शास्ता एवं संघ के प्रति श्रद्धा का प्रतिपादन किया। । १. "सोभितस्स अपरेन, सम्बुद्धो द्विपदुत्तमो। अनोमदस्सी अमितयसो, तेजस्सी दुरतिक्कमो ॥" -बुद्धवंस अट्ठकथा, पृ० २५७ । २. “अनोमदस्सिस्स अपरेन, सम्बुद्धो द्विपदुत्तमो । पदुमो नाम नामेन, असमो अप्प टिपुग्गलो ॥" -बुद्धवंस अकया, पृ० २६५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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